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पालक की खेती से कम लागत और कम समय में कमाएं लाखों रुपए

पालक की खेती नगदी फसल के रूप में की जाती है. जिसके सम्पूर्ण भाग का उपयोग सब्जी बनाने में किया जाता है. सब्जी के रूप में भी इसे कई तरह से खाया जाता है, पालक की उत्पत्ति का स्थान ईरान को माना जाता है।

पालक को बाकी सब्जी फसलों से ज्यादा गुणकारी माना जाता है. पालक में आयरन की मात्रा सबसे ज्यादा पाई जाती है. जिससे खाने से मनुष्य के शरीर में खून की मात्रा में वृद्धि होती है.

पालक की खेती मे बुआई का समय

रबी में

बुआई का समय- 1 सितंबर से 31 दिसंबर के बीच

फसल अवधि- 40 से 50 दिन

जायद में

बुआई का समय- 1 फ़रवरी से 31 मार्च के बीच

फसल अवधि- 35 से 50 दिन


तापमान , मिट्टी की तैयारी व खेत की जुताई

पालक की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है । इसके लिए मिटटी का ph 6.0 और 6.7 के बीच होना चाहिए।

पालक की फसल बुवाई से 20 दिन पहले 1 एकड़ खेत में 8 टन सड़ी हुए गोबर की खाद में 2.5 किलोग्राम ट्रिकोडेर्मा ( Tricoderma ) को मिलाकर खेत में डाल दे। इसके बाद खेत की 3 से 4 बार जुताई करके पट्टा फेर दे।


पालक की उन्नत किस्में ( Varieties )

Punjab Green- अवधि 30 से 35 दिन इसके पत्ते अर्द्ध सीधे और गहरे चमकीले रंग के होते है । बिजाई के बाद यह 30 दिनों में कतई के लिए तैयार हो जाती है । इसकी औसतन पैदावार 125 क्विंटल प्रति एकड़ होती है । इसमें ऑक्सेलिक एसिड की मात्रा कम होती है।

Shriram Green Wodder- अवधि 35 से 40 दिन यह 35 से 40 दिन में तैयार होने वाली किस्म है । यह किस्म मुल्यांकन के लिए उपयुक्त है।

Pusa Palak- अवधि 40 से 45 दिन इस किस्म को स्विसचार्ड से संकरित कर विकसित किया गया है। इसमें एक समान हरे पत्ते आते हैं। इसमें जल्दी से फूल वाले डंठल बनने की समस्या नहीं आती है।

पूसा हरित- अवधि इस किस्म को पहाड़ी इलाकों में पूरे वर्ष उगाया जा सकता है। इसके पौधे ऊपर की तरफ बढ़ने वाले ,ओजस्वी , गहरे हरे रंग के और बड़े आकार की पत्ती वाले होते हैं।

इसकी कई बार कटाई की जा सकती है। इसमें बीज बनाने वाले डंठल देर से निकलते हैं । इस किस्म को विभिन्न प्रकार की जलवायु एवं क्षारीय भूमि में भी आसानी से उगाया जा सकता है।

ऑल ग्रीन- अवधि इस किस्म के पौधे एक समान हरे , मुलायम और पत्ते 15 से 20 दिनों के अंतराल पर कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं । इनकी 6 से 7 कटाइयां आसानी से की जा सकती हैं । यह एक अधिक उपज देने वाली किस्म है और इसमें सर्दी के दिनों में लगभग ढाई महीने बाद बीज व डंठल आते हैं ।

बनर्जी जाइंट-अवधि इसके पत्ते काफी बड़े , मोटे तथा मुलायम होते हैं । तने और जड़ें भी कापफी मुलायम होती हैं ।

जोबनेर ग्रीन- अवधि इस किस्म में एक समान हरे , बड़े , मोटे , रसीले तथा मुलायम पत्ते आते हैं । पत्ती पकाने पर आसानी से गल जाती है । इस किस्म को क्षारीय मृदा में भी उगाया जा सकता है ।

पंत कम्पोजिट1- अवधि यह काफी उपजाऊ किस्म है तथा इसकी पत्तियों पर सर्कोस्पोरा पत्ती धब्बा रोग का प्रकोप कम होता है ।


पालक की खेती मे बीज की मात्रा

पालक की 1 एकर फसल तैयार करने के लिए 8 से 10 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होते है । बुआई से पहले बीजों को 5-6 घंटे तक पानी में भिगाकर रखने से बीज का जमाव अच्छा होता है । फसल बुआई के समय खेत में उचित मात्रा में नमी जरुरी है ।

बीज उपचार

हाइब्रिड बीज पहले से उपचारित आते है इनकी सीधी बुवाई की जा सकती है । अगर घर पर तैयार किया हुआ या देसी बीज की बुवाई करते है तो इसे कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम + थिरम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित कर ले ।

बुआई का तरीका

पालक की फसल बुवाई के समय पौधे से पौधे की दूरी 1 से 1.5 सेमी और पंक्ति से पंक्ति की दूरी 10 से 20 सेमी रखे । बीज को नमी के हिसाब से 2.5 सेमी की गहराई पर लगाए ।


उर्वरक व खाद प्रबंधन

पालक की खेती के लिए गोबर की सड़ी खाद व वर्मीकम्पोस्ट का इस्तेमाल करना सही होता है । इससे मृदा को सही पोषक तत्व मिलते हैं और पालक की फसल भी अच्छी होती है ।

बुवाई के समय

बुआई के समय 1 एकड़ खेत में 10 किलोग्राम नाइट्रोजन , 20 किलोग्राम फॉस्फोरस व 25 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल करे ।

बुवाई के 20 से 25 दिन बाद फसल में हर कटाई पर 1 एकड़ खेत में 20 किलोग्राम यूरिया खाद का इस्तेमाल करे।


पालक की खेती मे सिंचाई

पालक की फसल के लिए खेत में पर्याप्त नमी होना चाहिए । इस फसल को 4 से 5 सिंचाई की जरुरत होती है।

फसल की तुड़ाई

पालक की फसल में किस्मो के अनुसार 35 से 40 दिन पर कटाई शुरु हो जाती है।


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