जैविक खाद बनाने के लिए किसान कैसे करें नरवाई का उपयोग?

किसानों को नरवाई का उपयोग जैविक खाद तैयार करने के लिए करना चाहिए। नरवाई जलाने से पहले बचे हुए फसलों और डंठलों को एकत्र करके जैविक खाद जैसे भू-नाडेप, वर्मी कम्पोस्ट आदि बनाए जा सकते हैं। इससे बहुत जल्दी खेत में पोषक तत्वों से भरपूर जैविक खाद बन सकती है।

फसलों में जीवांश खाद की बचत करने के लिए कल्टीवेटर, रोटावेटर या डिस्क हेरो आदि का प्रयोग करके फसल अवशेषों को भूमि में मिलाया जा सकता है। इससे मिट्टी की संरचना को बिगड़ने से बचाया जा सकता है, और पशुओं के लिए भूसा और खेत के लिए बहुमूल्य पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है।

गेहूं काटने के लिए कम्बाईन हार्वेस्टर के साथ स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम का उपयोग करना चाहिए, जिससे सामान्य हार्वेस्टर की तुलना में काफी बचत होती है।

खेत में कृषि अपशिष्टों को जलाने से  हानियां

खेत में अनाज और फसल की खेती से बचा हुआ कचरा जलाने से यह हानियां होती हैं…

  • नरवाई जलाने से जमीन की जीवविविधता खत्म हो जाती है।
  • जमीन में मौजूद सूक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं।
  • सूक्ष्म जीवों का नष्ट होना खेती के लिए जरूरी जैविक खाद का निर्माण रुक जाता है।
  • नरवाई जलाने से जमीन की ऊपरी परत जलती है, जिससे पौधों को नुकसान होता है।
  • भूमि कठोर हो जाती है, जिससे जल धारण क्षमता बढ़ाने के लिए जरूरी विभिन्न तत्वों की कमी होती है।
  • नरवाई जलाने से पर्यावरण प्रदूषित होता है, और जमीन की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है।
  • जब इस कचरे को जलाया जाता है, तो जगह-जगह लगे पेड़-पौधे भी नुकसान उठाते हैं। इससे तापमान बढ़ता है।
  • नरम मिट्टी में कार्बन से नाइट्रोजन और फास्फोरस का अनुपात कम हो जाता है, जो फसल की वृद्धि को प्रभावित करता है।

इसलिए, खेत में कचरा (नरवाई) जलाने से जन धन का नुकसान होता है।

नरवाई से नाडेप खाद कैसे बनाते हैं ? – Nadep Fertilizer

नरवाई से नाडेप खाद (Nadep Khaad) बनाने का तरीका सरल है। फसल कटाई के बाद बचे अवशेषों को मिट्टी व गोबर के साथ मिलाकर नाडेप टांका बनाते हैं। नाडेप टांका 12 फीट लंबा, पांच फीट चौड़ा और तीन फीट ऊंचा होता है।

टांके में फसल अवशेष, मिट्टी, गोबर और अन्य कचरे भरे जाते हैं, फिर 24 घंटे के भीतर नाडेप टांके को पानी से गीला कर दिया जाता है। टांके में हवा के संचार से जीवाणु प्रक्रिया द्वारा लगभग 90 से 100 दिन में अच्छी जैविक खाद बन जाती है।

नरवाई से बनाई गई खाद में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश व अन्य पोषक तत्व होते हैं, जो फसल का उत्पादन बढ़ा देते हैं। इसमें पानी का छिड़काव भी करना जरूरी होता है, और इतनी मात्रा में बनाई गई खाद एक एकड़ के लिए पर्याप्त होती है।

सरकार की किसानों से अपील

कृषि विभाग ने किसानों से अनुरोध किया है, कि वे नरवाई नहीं जलाएं। नरवाई जलाने से पर्यावरण को नुकसान होता है, और इससे अग्नि दुर्घटना की आशंका भी रहती है। इसके अलावा मिट्टी पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

फसल काटने के बाद तने बचते हैं, जिसे नरवाई कहते हैं। किसान नरवाई में आग लगाकर उसे नष्ट करते हैं, जिससे भूमि की उर्वरकता नष्ट होती है और अग्नि दुर्धटना का खतरा रहता है। पर्यावरण विभाग ने इसे प्रतिबंधित किया है।

किसानों से अनुरोध है, कि वे फसल अवशेषों को जलाने की बजाय उन्हें वापस भूमि में मिला दें। इससे कार्बनिक पदार्थों की उपलब्धता, पोषक तत्वों की उपलब्धता, मृदा भौतिक गुणों के सुधार और फसल उत्पादकता में वृद्धि होती है।

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