जलकुंभी से बन रही साड़ियां 450 महिलाओं को दे रहे रोजगार

नदियों, तालाबों, जलाशयों पर कब्जा कर लेने वाली जलकुंभियां (water hyacinth) अभिशाप मानी जाती हैं, लेकिन झारखंड के एक पर्यावरण वैज्ञानिक गौरव आनंद ने इन्हें वरदान में बदल डाला है. उन्होंने जलकुंभी से फाइबर बनाने की तकनीक विकसित की और उसे कपास के साथ मिलाकर साड़ियां बनाने का उद्यम स्थापित कर डाला. इस नए प्रयोग ने लगभग 450 महिलाओं के लिए रोजगार की राह खोल दी है।

जलकुंभियों से बनाई साड़ियां

अपने 16 साल के जमे-जमाये कॉरपोरेट करियर को छोड़कर गौरव आनंद ने स्वच्छता पुकारे फाउंडेशन नामक संस्था बनाई और खुद को पर्यावरण संरक्षण के मिशन को समर्पित कर दिया, उनके अभिनव प्रयोग को जलकुंभियों से साड़ी और अन्य उपयोगी उत्पाद बनाने के लिए खूब सराहा जा रहा है।

गौरव आनंद ने कैसे शुरू किया ये काम

गौरव आनंद जमशेदपुर में टाटा स्टील यूटिलिटीज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर सर्विसेज में बेहतरीन पैकेज वाली नौकरी कर रहे थे। वह नौकरी के साथ ही वर्षों से पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं पर काम कर रहे थे। सन् 2018 में उन्हें नमामि गंगे मिशन से जुड़कर लगभग एक महीने तक गंगा की सफाई अभियान में सहभागी बनने का मौका मिला।

इस अभियान के बाद उनकी जिंदगी का मकसद बदल गया। उन्होंने जमशेदपुर में नदियों और जलस्रोतों की सफाई का अभियान शुरू किया। उनके द्वारा स्वच्छता पुकारे फाउंडेशन के बैनर तले रविवार और छुट्टियों के दिन जमशेदपुर की स्वर्णरेखा, खरकई नदी और विभिन्न जलाशयों की सफाई की जाती थी।

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कैसे और कहाँ से मिला आइडिया

गौरव आनंद ने देखा कि अधिकांश जलाशय जलकुंभियों से भरे रहते हैं, हटाए जाने के कुछ समय बाद जलकुंभियां फिर फैल जाती थीं। इस पर उन्होंने सोचना शुरू किया कि मुसीबत बनी हुई जलकुंभियों को संसाधन के रूप में कैसे विकसित किया जाए? आखिर इनमें कुछ गुण होंगे।

गौरव बताते हैं कि उनके रिसर्च के दौरान पाया गया कि जलकुंभी में सेल्युलोज़ होता है, जो फाइबर के निर्माण के लिए बुनियादी जरूरत है। इसकी विशेषता को जानने के बाद हमने ऐसे लोगों से संपर्क किया जो इसके फाइबर निकालने में मदद कर सकें।

रिसर्च और प्रयोग के बाद हमें एक नयी राह निकलने का मौका मिला। उन्हे पता चला कि असम और पश्चिम बंगाल में कुछ लोग इस पर काम कर रहे हैं, छोटे स्तर पर। उनकी प्रेरणा से प्रेरित होकर हमने इस पर काम करना शुरू किया और उन्हे लैंपशेड, नोटबुक और शोपीस बनाने में सफलता मिली। इसी बीच, उन्हे कॉर्पोरेट की नौकरी छोड़कर अपने आपको पर्यावरण संरक्षण के प्रयोगों और प्रयासों में समर्पित कर दिया।

जलकुंभी से साड़ी बनाने की प्रक्रिया

जलकुंभी से साड़ी बनाने की प्रक्रिया निम्नानुसार होती है….

  1. जलकुंभी की लुगदी से फाइबर बनाया जाता है। इसके लिए, जलकुंभी को गर्म पानी में डालकर उसे उपचारित किया जाता है, ताकि उसमें मौजूद कीटाणु दूर हो जाएं।
  2. जब जलकुंभी को उपचारित कर दिया जाता है, तो उसके तने से रेशे निकाले जाते हैं।
  3. इन रेशों को धागा बनाया जाता है, और उनपर रंग लगाया जाता है।
  4. धागों की सहायता से बुनकर साड़ियां बनाई जाती हैं।
  5. जलकुंभी और कपास का अनुपात 25:75 रखा जाता है। इसका मतलब है कि साड़ी के लिए लगभग 25 किलो जलकुंभी का उपयोग होता है।
  6. साड़ी की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए, कपास, पॉलिएस्टर, तसर और अन्य फाइबर सामग्री का उपयोग किया जाता है। इससे साड़ी की मजबूती और लंबाई बढ़ती है।
  7. साड़ी को फ्यूजन तकनीक से तैयार किया जाता है, जिसमें जलकुंभी के तारे और कपास के तारे मिलकर एक बुनाई धागा बनता है।
  8. साड़ी पर विभिन्न रंगों का चयन किया जाता है और इसे सुंदर आकृति और पैटर्न से सजाया जाता है।
  9. इस फ्यूजन साड़ी की कीमत आमतौर पर 2,000 से 3,500 रुपये के बीच रखी जाती है। इसका ध्यान रखा जाता है कि यह मध्यम आय वर्ग की पहुंच के भीतर हो।

जलकुंभी से एक साड़ी बनाने में तीन से चार दिन का समय लगता है। इस तरीके से जलकुंभी से साड़ी बनाई जाती है और यह वस्त्र आदर्श और आकर्षक होती है।

3 से 4 दिन में तैयार हॉट है साड़ी

जब गौरव आनंद ने जलकुंभियों से निकाले जाने वाले फाइबर का उपयोग करके बुनाई की शुरुआत की, तो कपड़ा उद्योग के विशेषज्ञों और अन्य विशेषज्ञों ने इसे संभाव्य नहीं ठहराया। सभी लोगों का कहना था कि कपड़े इससे नहीं बना सकते।

लेकिन गौरव प्रयोग के दौरान जुटे रहे और अंत में फरवरी 2022 में पश्चिम बंगाल के शांतिपुर में हैंडलूम पर काम करने वाले परंपरागत कारीगरों के साथ मिलकर उन्होंने इस फाइबर को कपास के साथ मिलाकर हैंडलूम फ्यूजन साड़ियों को तैयार करने में सफलता प्राप्त की।

अब पश्चिम बंगाल और झारखंड के बुनकर परिवारों की लगभग पांच सौ महिलाएं इस विशेष साड़ी की बुनाई में जुटी हुई हैं। आमतौर पर, इस विशेष साड़ी को तैयार करने में तीन से चार दिन लग जाते हैं।

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