शलजम की खेती मे अच्छी पैदावार के लिए रखे इन बातों का ध्यान

शलजम की खेती ठंडी के मौसम में बहुतायत की जाने वाली खेती है, शलजम जड़ वाली फसलों में शामिल है।

इसका उपयोग सब्जी और सलाद के रूप मे सबसे ज्यादा किया जाता है।इसके अलावा शलजम का बाकी बचा हिस्सा यानी इसकी पत्तियां पशुओं के लिए पौष्टिक आहार के रूप मे इस्तेमाल किए जाते हैं।

ठंडी के मौसम में अगर आप भी करना चाहते हैं शलजम की खेती, तो इससे जुड़ी कुछ हर महत्वपूर्ण जानकारियां आप के पास होना बहुत ही आवश्यक है। तो आइए जानते है इस पोस्ट के माध्यम से की शलजम की खेती की बस्तारित जानकारी।


बुआई का समय

जायद में

बुआई का समय – 1 मार्च से 30 मई के बीच

फसल अवधि – 50 से 75 दिन

रबी में

बुआई का समय – 1 सितंबर से 20 दिसंबर के बीच

फसल अवधि – 50 से 75 दिन


तापमान , मिट्टी की तैयारी व खेत की जुताई

शलजम की फसल को सभी प्रकार की भूमि में उगाए जा सकती है लेकिन बलुई दोमट मिटटी अच्छी मानी जाती है। शलजम की खेती के लिए ठंडी जलवायु की जरुरत होती है।

यह फसल अधिक ठन्ड और पाले को सहन कर लेती है। खेत की गहरी जुताई करके 1 एकड़ खेत में 5 से 6 टन गोबर की खाद खेत की तैयारी के समय मिट्टी में अच्छी तरह मिला दे।

पलेवा के बाद खेत की 2 से 3 बार गहरी जुताई करके पट्टा फेर दे।


शलजम की उन्नत किस्में ( Varieties )

  • परपल – टोप अवधि जड़ें बड़े आकार की , ऊपरी भाग बैंगनी , गूदा सफेद तथा कुरकुरा होता है। यह अधिक उपज देती है। इसका गूदा ठोस एवं ऊपरी का भाग चिकना होता है।
  • पूसा – चन्द्रिमा अवधि यह किस्म 55-60 दिन में तैयार हो जाती है । इसकी जड़ें गोलाई लिये हुए होती है। यह अधिक उपज देती हैं । उपज 200-250 कु . प्रति हैक्टर देती है। जाड़ों के लिए उत्तम है।
  • स्नोवाल अवधि अगेती किस्मों में से है । इसकी जड़ें मध्यम आकार की , चिकनी , सफेद एवं गोलाकार होती हैं। गूदा नरम , मीठा होता है।
  • पूसा – स्वेती अवधि यह किस्म भी अगेती है।

शलजम की खेती मे बुवाई समय

अगस्त – सितम्बर में की जाती है। जड़ें काफी समय तक खेत में छोड़ सकते हैं। जड़ें चमकदार व सफेद होती हैं। 40-45 दिन में खाने लायक होती है।

बीज उपचार

बीज को बुवाई से पहले उपचारित करे फसल को जड़ गलन से बचाने के लिए बिजाई से पहले tebuconazole 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करें। बीज की मात्रा शलजम की 1 एकड़ फसल तैयार करने के लिए 200 ग्राम बीज की जरूरत होती है।

बुआई का तरीका

शलजम की बुवाई कतारों में करे बुवाई के समय लाइन से लाइन की दूरी 30 से 40 सेमी रखे । जब पौधे 10 से 15 दिन के हो जाए तो पौधे की छटाई कर दे पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी रखे । बीज को 1 से 2 सेमी की गहराई पर लगाए।


शलजम की खेती मे उर्वरक व खाद प्रबंधन

शलजम की 1 एकड़ फसल तैयार करने के लिए 5 से 6 टन गोबर की खाद , 10 किलोग्राम यूरिया , 20 किलोग्राम डी ए पी , 25 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल करे।

25 से 30 दिन की फसल होने पर 1 एकड़ खेत में 25 किलोग्राम यूरिया 5 किलोग्राम जायम का इस्तेमाल करे। कंद बनते समय 1 एकड़ खेत में 1 किलोग्राम npk 0:52:34 और 500 ग्राम बोरोन को 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करे।


शलजम की खेती मे सिंचाई

शलजम की फसल में फसल बुवाई के समय नमी की कमी होने पर बुवाई के तुरंत बाद सिंचाई करे । फसल में नमी के अनुसार 10 से 15 दिन पर सिंचाई करते रहे।

फसल की खुदाई

शलजम की जड़ो की खुदाई तब करे जब कंद का व्यास 5.0 से 7.5 सेमी का हो जाए । कंद खुदाई से पहले खेत की हल्की सिंचाई कर दे ऐसा करने से कंद की खुदाई आसानी से हो जाती है।


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