आम की खेती करने वालों के लिए आम में होने वाले कीटों और रोगों को समझना बेहद जरूरी होता है। आम में कई प्रकार के रोग और कीट लगते हैं, जो नर्सरी से लेकर भंडारण तक हर स्तर पर नुकसान पहुंचाते हैं। इन रोगों और कीटों से तना, पत्तियां, जड़ और फल आदि प्रभावित होते हैं।
कुछ रोग आम की फसल को भारी नुकसान पहुंचाते हैं, जैसे की पाउडरी मिलडयू, एन्थ्रेक्नोज, डाई बैंक, सूटी मोल्ड, गमोसिस आदि। इन रोगों और कीटों की पहचान करने और उन्हें नियंत्रित करने के लिए विभिन्न विधियों की जानकारी दी जा रही है।
आम के बाग मे होने वाले कुछ प्रमुख रोग – Mango Diseases
आगे हम जानेंगे की आम की बागवानी मे कौन – कौन से रोग हो सकते है, उनके क्या लक्षण होंगे और उन रोगों की हम कैसे रोकथाम कर सकते है।
सीधा रोग पर जाए
पेड़ों में होने वाला गुच्छा रोग
गुच्छा / गम्मा रोग (malformation in mango) एक ऐसा रोग है, जो पेड़ों पर होता है। इस रोग के कारण पेड़ में होने वाले हार्मोनों का असंतुलन होता है। इस रोग से ग्रसित पेड़ों में पत्तियों और फूलों में असामान्य वृध्दि और फल विकास अवरुद्द हो जाता है। इस रोग से आम की भारतीय प्रजातियों में अधिकतर होती है।
गुच्छा रोग के लक्षण
नई पत्तियों और फूलों की असामान्य वृध्दि, टहनियों पर अनगिनत छोटी-छोटी पत्तियां निकल आना, बौर के फूलों का असामान्य आकर होना, फूल का गिर जाना और फल निर्माण अबरूद्द हो जाना।
आम का पाउडरी मिल्डयू रोग
पाउडरी मिल्डयू एक रोग है, जो ओइडीयम मैंजीफेरी नामक कवक के कारण होता है। यह फरवरी-मार्च या ठंडी रातों में अधिक होता है। इसके कारण पुष्पवृत्त, पुष्प और छोटे अविकसित फल पीले हो जाते हैं।
पाउडरी मिल्डयू रोग से बचाव
इस रोग से बचाव के लिए एक मौसम में कुल तीन छिड़काव की संस्तुति की जाती है। प्रथम छिड़काव में पुष्प वृत्तों के निकलने से पहले घुलनशील गंधक (वेटैबुल सल्फर) के घोल से किया जाता है।
द्वितीय छिड़काव में ट्राइडेमार्फ (कैलिक्सीन) के घोल से या रोग दिखाई देने पर किया जाता है। तृतीय छिड़काव में डाइनोकैप (कैराथेन) या ट्राइडीमेंफान (बेलेटान) के घोल से किया जाता है। रोग लगने से पहले उपचार करना अधिक फायदेमंद होता है।
आम के पत्तों का जलना (Life Scorching/Burning)
उत्तर भारत में आम के कुछ भागों में पोटेशियम की कमी और क्लोराइड की अधिकता से पत्तों को जलने की समस्या होती है। इस समस्या से पूराने पत्ते दूर से ही जले हुए दिखते हैं।
आम के पत्तों का जलना से रोकथाम कैसे करे
- इस समस्या से बचाव के लिए पौधों पर पांच प्रतिशत पोटेशियम सल्फेट का छिड़काव करें।
- यह छिड़काव नई पत्तियों आने पर करना चाहिए।
- पोटेशियम क्लोराइड उर्वरक का प्रयोग न करें।
सुझाव: पौधों के लिए पोटेशियम सल्फेट के छिड़काव से समस्या को दूर करने में मदद मिल सकती है।
एन्थ्रैक्नोज (काला वर्ण) रोग
एन्थ्रैक्नोज एक कवक जनित रोग है जो मौसम के नाम पर पौधों के पत्तों पर भूरे रंग के धब्बों के रूप में प्रकट होता है। इस रोग से नई पत्तियां अधिक प्रभावित होती हैं।
पौधों के लिए एन्थ्रैक्नोज रोग की रोकथाम
रोकथाम के लिए, फरवरी, अप्रैल, अगस्त और सितंबर महीनों में कापर ऑक्सीक्लोराइड 50 डब्ल्यू पी की 3.0 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर या कार्बेन्डाजिम की एक ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में घोल कर पौधों पर छिड़काव किया जा सकता है।
आम मे झुमका रोग
इस रोग में आम का आकार मटर के दाने जैसा हो जाता है। इसका मुख्य कारण पुष्पावस्था में कीटनाशक का छिड़काव होता है जिससे सत प्रतिशत पर-परागण की प्रक्रिया पूर्ण नहीं होती है, जिससे फ्रूट सेटिंग नहीं होता और आम का आकार मटर के दाने जैसा ही रह जाता है।
झुमका रोग की रोकथाम कैसे करे
पुष्पावस्था के समय किसी भी प्रकार के कीटनाशक और रोगनाशक का प्रयोग न करें। कीट आकर्षक फसलें जैसे गेंदा, गुलदाउदी, और सरसों आदि का अंतिम फसल लगाएं, जिससे बाग में पर-परागण करने वाले कीट की संख्या कम हो।
फोमा ब्लाइट – पत्तियों पर होने वाला रोग
यह रोग पुरानी पत्तियों पर होता है, जिससे उनमें भूरे धब्बे पड़ते हैं और वे सूखने लगती हैं, जिससे वे गिरने शुरू हो जाती हैं। पत्तियों के नीचे की सतह पर काले दाने जैसे फफूंदी की पिकनीडिया बनती है। इस रोग का सबसे स्पष्ट प्रकट होने वाला महीना नवंबर होता है।
फोमा ब्लाइट की रोकथाम
इस रोग को रोकने के लिए, हर महीने के अंत में दो बार 0.3 प्रतिशत कापर आक्सीक्लोराइड घोल का छिड़काव करना चाहिए।
सूटी मोल्ड (कलजी फफूंद) रोग
पत्तियों और टहनियों पर कीटों के द्वारा मधु (हनीडयू) स्रावित करने से काली फफूंदी उग जाती है, जिससे पत्तियां ढक ले लेती हैं। इससे पत्तियों को सूरज की रोशनी नहीं मिलती है, जिससे वे खाने की क्रिया में कमजोर हो जाती हैं।
कलजी फफूंद की रोकथाम
किसी कीटनाशक (डाइमिथेएट) के साथ कापर आक्सीक्लोराइड के 3.0 प्रतिशत (3.0 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी) घोल को लगभग एक महीने के अंतराल में दो बार छिड़काव करें। 2.0 प्रतिशत स्टार्च (अरारोट) का घोल लगाने से जब स्टार्च सूख जाता है तब काली फफंूदी स्टार्च के साथ भी नष्ट हो जाती है।
सूटी मोल्ड से बचने के लिए सुझाव
सूटी मोल्ड से बचने के लिए, समय-समय पर पौधों की सफाई करें और उन्हें नियमित रूप से जांचते रहें। अधिक मात्रा में पानी देने से बचें और पौधों की रोशनी को नुकसान पहुंचाने वाली किसी भी चीज़ से दूर रखें।
आम मे भण्डारण एवं विपणन के समय लगने वाले रोग
फलों का एन्थैक्नोज रोग और उससे बचाव
यह रोग फलों को सड़ने के कारण होता है, जिससे उन पर गोल अनियमित आकार के धब्बे बन जाते हैं। इस रोग से फलों को बचाने के लिए आप कार्बन्डाजिम (0.05 प्रतिशत) के घोल में एक बार डुबोकर फलों को भण्डारण कर सकते हैं। इससे यह रोग फैलने से रोका जा सकता है।
फलों को बचाएं ढेंपी विगलन (स्टेम एण्ड राट) रोग से
ढेंपी विगलन से फलों में नुकसान हो सकता है, जिससे 18-30 प्रतिशत तक की हानि हो सकती है। यह रोग पपर डंठल के नजदीकी भाग के पास का भाग भूरा पड़ने लगता है बाद में फलों के ऊपरी सिरे गोलाई में सड़ने लगते हैं, अंत में पूरा फल सड़कर काला दिखाई देने लगता है।
इससे बचने के लिए फल को तोड़ते समय सावधानी बरतें। फलों को डंठल के साथ तोड़कर एक कार्बेन्डाजिम 0.05 प्रतिशत घोल में डुबोकर फिर भण्डारण करने से रोग कम होता है। भण्डारण कक्ष हवादार, ठंडे और शुष्क होने चाहिए।
काला विगलन: फलों के लिए खतरा और रोकथाम
भण्डारण और परिवहन के दौरान काला विगलन से 25 प्रतिशत तक नुकसान होता है। यह रोग अधिक तेजी से फैलता है जब फलों को अधिक आर्द्रता और गर्मी से गुजरना पड़ता है। यह रोग सिर्फ चोट या खरोंच वाले फलों पर ही प्रभावित होता है। फल पर अनियमित आकार के धब्बे बनते हैं जो तेजी से बढ़कर भूरे या काले धब्बों में बदल जाते हैं। प्रभावित क्षेत्र में मृदा भी गल जाता है और फलों से बदबू आने लगती है।
काला विगलन रोग की रोकथाम
फलों को डंठल से तोड़ने से पहले खरोंचों की जांच करें। फलों को टापसिन-एम या कार्बेन्डाजिम (0.05 प्रतिशत) और फ्रूटाक्स (0.1 प्रतिशत) के घोल में डुबोकर भंडारित करें।
इसे पढे – ग्रामीण पशुपालकों के लिए SBI द्वारा निकाली जोरदार लोन स्कीम
नोट – यह किसी भी जानकारी को अमल मे लाने से पहले कृषि सलाहकार की सलाह अवश्य ले ।