बुआई का समय
खरीफ में
बुआई का समय – 10 जून से 31 जुलाई के बीच
फसल अवधि – 130 से 280 दिन
तापमान , मिट्टी की तैयारी व खेत की जुताई
अरहर की फसल सभी प्रकार की मिटटी में की जा सकती है, लेकिन बलुए दोमट मिटटी इस फसल के लिए ज्यादा अच्छी मानी जाती है। इस फसल के लिए मिटटी का पी एच मान 7 से 8 के बीच होना चाहिए।
खेत में जल निकास की अच्छी व्यवस्था रखे । फसल बुवाई करने के लिए खेत की 1 बार गहरी जोताई करने के बाद 6 से 8 टन गोबर की खाद डाले।
खेत की 2-3 बार हैरो से जोताई करें उसके बाद पाटे के साथ खेत को समतल कर दे बुवाई से पहले 1 एकड़ खेत में 2.5 किलोग्राम ट्राइकोडरमा का इस्तेमाल करे।
उन्नत किस्में ( Varieties )
- RVICPH 2671 – अवधि यह पहला सीएमएस आधारित ब्राउन बीजित अरहर की संकर किस्म है यह 164-184 दिनों में परिपक्व होती है , विल्ट और एसएमवी प्रतिरोधी , उच्च दाल प्रोटीन ( 24.7 % ) औसत उपज 22-28 क्विंटल / हेक्टेयर है । मध्यप्रदेश के लिए अनुशंसित है।
- पूसा 9 – अवधि 260 से 270 दिन यह 260 से 270 दिनों में तैयार होने वाली अरहर की उन्नत किस्म है , जिसकी बुआई जुलाई से सितम्बर ( शरदकाल ) तक की जाती है इसकी पैदावार क्षमता 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
- JKM-189 – अवधि असीमित वृद्धि वाली , हरी फल्ली काली धारियों के साथ , लाल – भूरा बड़ा दाना , 100 दानों का वजन 10.1 ग्राम व उकटा , बांझपन व झुलसा रोगरोधी एवं सूत्रकृमी रोधी एवं फली छेदक हेतु सहनषील , देर से बोनी में भी उपयुक्त । औसत उपज 20-22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।
- Pusa Ageti – अवधि 150 से 160 दिन यह छोटे कद की , मोटे बीजों वाली किस्म है । यह किस्म 150-160 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है । इसकी औसतन पैदावार 1 टन प्रति एकड़ होती है।
- ICPL 87 – अवधि 140 से 150 दिन यह मध्यम समय 140 से 150 दिन में पकने वाली बौनी किस्म हैं । इसकी ऊंचाई 90 से 100 सेन्टीमीटर और पैदावार 15 से 20 किंवटल प्रति हेक्टेयर होती हैं । फलियां मोटी एवं लम्बी होती हैं और गुच्छों में आती हैं तथा एक साथ पकती हैं । इसके बाद गेहूं बोया जा सकता हैं । यह झुलसा रोगरोधी हैं।
- UPAS – 120 – अवधि 130 से 140 दिन यह किस्म उत्तर प्रदेश के सभी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है । यह किस्म 130-140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है । यह मध्यम लंबी और अर्द्ध फैलने वाली किस्म है । इसके बीज छोटे और हल्के भूरे रंग के होते हैं । इसकी औसतन पैदावार 6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है । यह चितकबरे रोग के प्रति संवेदनशील है।
- TJT501 – अवधि 145 से 155 दिन यह 145-155 दिनों में परिपक्व होती है । विविधता में अर्ध फैलाने वाले मध्यवर्ती पौधे होते हैं जिनमें बड़े फली , पीले फूल और 9.5 ग्राम / 100 बीज के भूरे रंग के बीज होते हैं । यह उकटा रोग के लिए प्रतिरोधी है और फाइटोप्थोरा ब्लाइट के प्रति सहिष्णु है । औसत उपज 18-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर । यह किस्म एम.पी. , छत्तीसगढ़ , गुजरात , महाराष्ट्र और राजस्थान और उत्तर प्रदेश के हिस्से के लिए अनुशंसित की जाती है।
- ICPL151 – अवधि 125 से 135 दिन अरहर की यह शीघ्र पकने वाली किस्म है । यह 125 से 135 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसका दाना बड़ा व हल्के पीले रंग का होता है । इसकी पैदावार 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
- ICPL88039 – अवधि 140 से 150 दिन यह किस्म 140 से 150 दिनों में पककर तैयार हो जाती है । इसका दाना भूरे रंग का होता है। इसके पौधों की ऊंचाई 210 से 225 सेंटीमीटर होती है । इसकी पैदावार 16 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
- बहार – अवधि गुण 230 से 250 दिन अरहर की यह किस्म 230 से 250 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है । इसकी पैदावार 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
- आईपीए 203 – अवधि किसान अरहर की किस्म ‘ आईपीए 203 ‘ की बुवाई करके फसल को कई रोगों से बचा सकते हैं । साथ में अधिक पैदावार भी ले सकते हैं । इस किस्म में बीमारियां नहीं लगतीं । इसकी पैदावार 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है । इसकी बुवाई जून महीने में कर देनी चाहिए।
- पूसा16 – अवधि गुण यह किस्म शीघ्र पकने वाली ( 120 दिन ) , पौधा अर्ध – बौना ( 95 सेमी से 120 सेमी लंबा ) होता है । इस किस्म को 30 सेमी X 10 सेमी पंक्ति से पंक्ति एवं पौधों से पौधों की दूरी पर बुआई करने पर 3,30,000 पौधों / हेक्टेयर प्राप्त होते है । इस किस्म की औसत उपज 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
- RVA19 – अवधि गुण तमिलनाडु , तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में इस किस्म की खेती कर उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है इस किस्म की खेती से 15 फीसदी अधिक उत्पादन होने की उम्मीद है । इस किस्म में अन्य की तुलना में पीला मोजेक और उकठा आदि रोगों से लड़ने की अधिक क्षमता है।
बीज की मात्रा
अरहर की जल्दी पकने वाली किस्म का बीज 12 से 15 किलोग्राम प्रति एकड़ डाले । मध्यम समय में पकने वाली किस्म का बीज 6 से 7 किलोग्राम प्रति एकड़ डाले।
बीज उपचार
अरहर के बीज की बुवाई करने से पहले ट्राइकोडर्मा विरडी 1.0 % डब्ल्यूपी 4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से मिलाकर बीज को उपचारित करें।
बीज उपचार के बाद बीज को राइजोबियम कल्चर 5 ग्राम एवं पी.एस.बी. कल्चर 5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीज उपचारित करें। अरहर के बीज को कल्चर से उपचार करने के बाद छाया में सुखाकर उसी दिन बुवाई कर दे।
बुआई का तरीका
अरहर की बुवाई कतारों में करे । कम समय में तैयार होने वाली किस्मो की कतार से कतार की दूरी 30 से 45 सेमी रखे । पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 सेमी रखे।
देर से पकने वाली किस्मो की कतार से कतार की दूरी 60 से 75 सेमी रखे । पौधे से पौधे की दूरी 20 से 25 सेमी रखे।
उर्वरक व खाद प्रबंधन
अरहर बुवाई के समय 20 किलोग्राम डीएपी , एवं 10 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश , 5 किलोग्राम सल्फर का इस्तेमाल प्रति एकड़ कतारों में बीज के नीचे दिया जाना चाहिये।
तीन वर्ष में एक बार 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति एकड़ आखिरी बखरीनी के समय भुरकाव करने से पैदावार में अच्छी बढ़ोतरी होती है।
सिंचाई
अरहर की फसल में ज्यादा सिचाई की जरुरत नहीं होती है । 1 सिचाई फूल बनने पर और दूसरी सिचाई फली बनने पर करे।
फसल की कटाई
जब पत्तिया गिरने लग जाय और फलिया भूरे रंग की हो जाय तब फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
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