बकरी पालन मैं ध्यान रखने वाली 20 लाभकारी बातें

बकरी पालन जीविका का आधार

बकरी पालन को बिना जमीन वाले लोग, मजदूरी करके जीवन यापन करने वाले लोगों, छोटे और सीमांत किसानो तथा सामाजिक आर्थिक रूप से पिछड़े हुए कई लोगों का जीवन जीने का आधार माना जाता है, क्योंकि किसी अन्य पशुओं की तुलना में बकरीपालन को ज्यादा फायदेमंद समझा जाता है।

इसी कारण से कई किसानों की पहली पसंद बकरी पालन बनी हुई है, आज हम इस पोस्ट में बकरी पालन (Goat Farming) पर कुछ विशेष बातों के बारे में जानेंगे…..

बकरी पालन किफायती और मुनाफे का काम

बकरी पालन एक बहुत ही किफायती और मुनाफे का काम है, अब फिर आप तीन – चार बकरियां लेकर घर में बकरी पालन करें या फिर एक बड़े स्तर पर सैकड़ों बकरियां रखकर व्यवसायिक रूप से बकरी पालन करें।

बकरी पालन कि जब शुरुआत की जाती है, तो इसका शुरुआती खर्चा बहुत ही कम होता है, यहां तक कि बकरी पालन में तो बकरियों के चारे और देखरेख का खर्चा भी बहुत कम होता है, वही आमदनी की बात करें तो बकरी पालन में 4 से 5 महीना में किसान को आमदनी प्राप्त होना चालू हो जाती है।

बकरी पालन में यदि शुरुआती निवेश के मुकाबले में आमदनी देखी जाए तो यह 3 से 4 गुना तक हो सकती है, परंतु इसके लिए सबसे जरूरी तो यह होगा कि आप वैज्ञानिक तरीके से बकरी पालन करें।

Goat rearing will result in more profit in less expenditure,

बकरी पालन बन रहा किसान की पसंद

जैसे कि हमने जाना कि बकरी पालन छोटे और सीमांत किसान, खेतों में काम करने वाले मजदूर एवं भूमिहीन किसानों के लिए बहुत ही फायदेमंद है, क्योंकि अन्य पशुओं की तुलना में बकरी पालन में बहुत ही कम खर्च है, और मुनाफा अच्छा है जिनसे की आर्थिक रूप से पिछड़े हुए लोग बिना कोई ज्यादा निवेश के अच्छा मुनाफा प्राप्त कर जीवन यापन कर सकते है।

देश मे तेजी से बढ़ रहा बकरी पालन

देशभर में बकरी पालन तेजी से बढ़ रहा है, बकरी पालन किसानों की पहली पसंद बन गई है, इस बात का अंदाजा हम यहां से लगा सकते हैं, कि पशु गणना 2012 में देशभर में बकरियों की संख्या 13.52 करोड़ थी जो की बढ़कर पशु गणना 2019 में देशभर में बकरियों की संख्या 14.9 करोड़ हुई।

दूध और मांस के उत्पादन में बकरियों का महत्वपूर्ण योगदान

देशभर में दूध और मांस के उत्पादन में बकरियों का महत्वपूर्ण योगदान है, बकरी पालन की दूध के उत्पादन में 3% की हिस्सेदारी है, वहीं पर मांस के उत्पादन में देखा जाए तो बकरियों से 9.4 लाख टन मास की प्राप्ति होती है, जो कि संपूर्ण मांस उत्पादन का लगभग 13% है।

बकरी पालन मैं ध्यान रखने वाली 20 विशेष बातें

बकरी पालन को तेजी से बढ़ते हुए देखा और कई विशेषताओं के कारण केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान मथुरा के वैज्ञानिकों ने बकरी पालन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं, जिन्हें अपनाकर बकरी पालन में अच्छा खासा मुनाफा प्राप्त किया जा सकता है।

नस्ल का चुनाव स्थानीय वातावरण

बकरी पालक को बकरी की नस्ल का चुनाव स्थानीय वातावरण को ध्यान में रखकर करना चाहि, क्योकि दुनिया में बकरी की कम से कम 103 नस्लें हैं। इनमें से 21 नस्लें भारत में पायी जाती हैं।

इनमें प्रमुख हैं –

  • बरबरी, जमुनापारी,
  • जखराना, बीटल,
  • ब्लैक बंगाल, सिरोही,
  • कच्छी, मारवारी, गद्दी,
  • ओस्मानाबादी और सुरती।

इन नस्लों की बकरियों की बहुतायत देश के अलग-अलग इलाकों में मिलती है।

सभी बकरियो से एक जैसी कमाई

आमतौर पर जो बकरी ज़्यादा मेमनों को जन्म देती है उसके बच्चों का वजन कम होता है। जबकि कम बच्चों को जन्म देने वाली बकरियों के मेमनों का वजन ज़्यादा होता है। इस तरह, बकरियों की सभी प्रजातियों से कुल मिलाकर एक जैसी ही कमाई होती है।

प्रजनन के लिए उत्तम बकरे का चुनाव

बकरी पालन के तहत यदि उन्नत नस्ल के मेमने चाहिए तो प्रजनन के लिए इस्तेमाल होने वाले बकरे को बाहर से लाकर ही स्थानीय बकरियों के सम्पर्क में लाना चाहिए।

प्रजनक बकरे की माँ उताम नस्ल की हो

प्रजनक बकरे की माँ को ज़्यादा दूध देने वाली और ज़्यादा मेमनों को जन्म देने वाली होना चाहिए, इसके अलावा, ऐसे बकरे को शारीरिक रूप से विकसित, स्वस्थ और उन्नत नस्ल का होना चाहिए।

गाभिन समय पर कराना चाहिए

बकरी को गर्मी में आने या कामातुर होने के 12 घंटे बाद गाभिन कराना चाहिए। अप्रैल-मई तथा अक्टूबर-नवम्बर में गाभिन कराने पर बच्चे अनुकूल मौसम में प्राप्त होते हैं।

इन ब्रीडिंग से बचाना चाहिए

बकरियों को अन्त: प्रजनन (इन ब्रीडिंग) से बचाना चाहिए, यानी, जिस बकरे से बकरी को गाभिन कराया गया हो उसी से उसके बच्ची को गाभिन नहीं कराना चाहिए।

बकरी का आवास अनुकूल हो

सम्भव हो तो बकरी का आवास (बाड़ा) पूर्व से पश्चिम दिशा में ज़्यादा फैला होना चाहिए, बाड़े की लम्बाई वाली दीवार की ऊँचाई एक मीटर होनी चाहिए और इसके ऊपर के हिस्से को जालीदार होना चाहिए।

80 से 100 तक बकरियों के लिए 20×60 वर्ग फ़ीट बाड़ा होना चाहिए और इसके झालीदार हिस्से की पैमाइश 40×60 वर्ग फ़ीट का होना चाहिए।

बाड़े का फर्श कच्चा मिट्टी वाला तथा रेतीला हो

बकरियों के बाड़े का फर्श कच्चा यानी मिट्टी वाला तथा रेतीला होना चाहिए, इसे रोकमुक्त रखने के लिए समय-समय पर बिना बुझे चूने का छिड़काव करते रहना चाहिए।

बकरियों तथा उनके बाड़े की साफ़-सफ़ाई का ख़ास ख़्याल रखने से ही बकरी पालन में ज़्यादा कमाई हासिल होगी।

बकरी व मेमनों को अलग बाड़ों में रखे

बकरियों के ब्याने के एक हफ़्ते बाद उसे और उसके मेमनों को अलग-अलग बाड़ों में रखना चाहिए, मेमनों को दूध पिलाने के वक़्त की बकरी के पास लाना चाहिए।

सूखा आहार खिलाना चाहिए

बकरी को उसके वजन के अनुपात में रोज़ाना 3 से 5 प्रतिशत भार जितना सूखा आहार खिलाना चाहिए, एक वयस्क बकरी को रोज़ाना एक से तीन किलोग्राम हरा चारा, 500 ग्राम से एक किलोग्राम तक भूसा और 150 से 400 ग्राम तक दाना रोज़ाना खिलाना चाहिए। भूसा यदि दलहनी फसलों का हो तो सबसे अच्छा है।

साबुत अनाज नहीं खिलाये

बकरियों को साबुत अनाज नहीं खिलाना चाहिए, उन्हें खिलाये जाने वाले दाने हमेशा दला हुआ और सूखा ही होना चाहिए। इसमें पानी नहीं मिलाना चाहिए।

दाने में 60-65 प्रतिशत दला हुआ अनाज, 10-15 प्रतिशत चोकर, 15-20 प्रतिशत खली, 2 प्रतिशत मिनरल मिक्सचर (खनिज तत्व) तथा एक प्रतिशत नमक का मिश्रण होना चाहिए। बकरियों को सरसों की खली नहीं खिलानी चाहिए।

साफ़ पीने का पानी हो

बकरी के पीने का पानी साफ़ होना चाहिए। बकरियों को नदी, तालाब और गड्ढे में जमा गन्दे पानी को पीने से बचाना चाहिए।

टीके अवश्य लगवाए

बकरियों में PPR, ET, खुरपका, मुँहपका, गलघोंटू तथा बकरियों के चेचक जैसे पाँच संक्रामक रोगों के टीके अवश्य लगवाने चाहिए।

ये टीके मेमनों के 3-4 महीने की उम्र के बाद ही लगाये जाते हैं।

बीमार बकरी को बाड़े से अलग कर दे

यदि कोई भी बकरी बीमार हो तो उसे फ़ौरन बाड़े से अलग कर देना चाहिए और उसका इलाज़ करवाना चाहिए, इलाज़ के बाद ठीक होने पर ही उन्हें वापस बाड़े में रखा जा सकता है।

परजीवी नाशक दवाई पिलाये

बकरियों को अन्त:परजीवी नाशक दवाईयाँ साल में दो बार ज़रूर पिलानी चाहिए, बरसात के मौसम के बाद ये दवाई ज़रूर पिलाएँ।

बाह्य परजीवी नाशक दवाईयों से नहलाए

बाह्य परजीवी नाशक दवाईयों के घोल से यदि बकरियों को सावधानीपूर्वक नहलाया जाए तो परजीवी मर जाते हैं। ऐसा घोल बनाने के लिए पानी में दवा की निर्धारित मात्रा ही मिलानी चाहिए।

मौसम के दुष्प्रभाव से बचाए

ज़्यादा सर्दी, गर्मी और बरसात के दुष्प्रभाव से बकरियों को बचाने के लिए समुचित इन्तज़ाम करना चाहिए। वर्ना, ये बीमार पड़ सकती हैं।

नाल दो इंच ऊपर से काटे

बकरी के ब्याने पर मेमने की नाल दो इंच ऊपर से किसी नये और साफ़ ब्लेड से काटना चाहिए। इसके बाद नाल पर टिंचर आयोडीन लगा देना चाहिए।

बकरी का पहला दूध मेमने को जल्द पिला दे

नवजात मेमने को आधे घंटे के भीतर बकरी का पहला दूध (खीस) पिला देना चाहिए। इससे मेमनों की रोग प्रतिरोधकता क्षमता बहुत बढ़ जाती है।

9-12 महीने की उम्र पर बेचे

बकरी के बच्चों को 9-12 महीने की उम्र पर त्यौहारों के आसपास बेचना ज़्यादा लाभकारी होता है, बकरी के दूध से बनाये गये पनीर से भी बढ़िया कमाई होती है।

Goat Farming -कम निवेश से शुरू करें बकरी पालन

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