काली हल्दी की खेती – काली हल्दी का प्रयोग घाव, मोच, त्वचा रोग, पाचन तथा लीवर की समस्याओं के निराकरण के लिए किया जाता है, साथ साथ यह कोलेस्ट्राल को कम करने में मदद करती है। काली हल्दी वानस्पतिक भाषा में करक्यूमा केसिया और अंग्रेजी में ब्लैक जेडोरी (Black Jedori) के नाम से जानी जाती है।
काली हल्दी का उपयोग सौन्दर्य प्रसाधन व रोग नाशक दोनों रूपों में किया जाता है, काली हल्दी मजबूत एन्टीबायोटिक गुणों के साथ चिकित्सा में जड़ी-बूटी के रूप में प्रयोग की जाती है, तंत्रशास्त्र में काली हल्दी का प्रयोग वशीकरण, धन प्राप्ति और अन्य कार्यों किया जाता है।
काली हल्दी की खेती हेतु उपयुक्त जलवायु
काली हल्दी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु उष्ण होती है, एवं तापमान 15 से 40 डिग्री सेन्टीग्रेड हो, उसके पौधे पाले को भी सहन कर लेते हैं, और विपरीत मौसम में भी अपना अनुकूलन बनाये रखते हैं।
खेती के लिए भूमि कैसी हो
यह बलुई, दोमट, मटियार, मध्यम पानी पकडऩे वाली जमीन में अच्छे से उगाई जा सकती है, चिकनी काली मुरूम मिश्रित मिट्टी में कंद बढ़ते नहीं है।
मिट्टी में भरपूर जीवाश्म हो, जल भराव या कम उपजाऊ भूमि में इसकी खेती नहीं की जा सकती है, इसकी खेती के लिए भूमि का PH 5 से 7 के बीच हो।
खेत की तैयारी कैसे करे
- काली हल्दी की खेती के लिए खेत की मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करें।
- उसके बाद खेत को सूर्य की धूप लगने के लिए कुछ दिनों तक खुला छोड़ दें ।
- उसके बाद खेत में उचित मात्रा में पुरानी गोबर की खाद डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला लें।
- काली हल्दी की खेती मे खाद को मिट्टी में मिलाने के लिए खेत की दो से तीन बार तिरछी जुताई कर दें ।
- जुताई के बाद खेत में पानी चलाकर उसका पलेवा कर दें।
- पलेवा करने के बाद जब खेत की मिट्टी ऊपर से सूखी हुई दिखाई देने लगे तब खेत की फिर से जुताई कर उसमें रोटावेटर चलाकर मिट्टी को भुरभुरी बना लें।
- इसके बाद खेत को समतल कर दें।
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किस समय पर काली हल्दी की बोआई करे
काली हल्दी की बोआई वर्षा ऋतु में जून-जुलाई माह में की जा सकती है, सिंचाई का साधन होने पर इसे मई माह में भी लगाया जा सकता है।
बीज मात्रा
काली हल्दी की बोआई मे लगभग 20 क्विंटल कंद प्रति हेक्टेयर लगते हैं।
बीजोपचार
हल्दी कंदों को रोपाई से पहले बाविस्टीन की उचित मात्रा से उपचारित कर ले, बाविस्टीन के 2 प्रतिशत घोल में कंद 15 से 20 मिनिट तक डुबोकर रखें क्योंकि इसकी खेती में बीज पर ही अधिक व्यय होता है।
कंदों की रोपाई कैसे करे
- काली हल्दी के कंदों की रोपाई कतारों में की जाती है।
- हल्दी की प्रत्येक कतार के बीच डेढ़ से दो फीट की दूरी हो ।
- कतारों में लगाये जाने वाले काली हल्दी के कंदों के बीच की दूरी 20 से 25 सेमी के आसपास हो।
- काली हल्दी कंदों की रोपाई जमीन में 7 सेमी गहराई में करें।
- पौध के रूप में इसकी रोपाई मेढ़ बनाकर की जाती है।
- हल्दी की प्रत्येक मेढ़ के बीच एक से सवा फिट दूरी हो।
- मेढ़ पर पौधों के बीच की दूरी कम से कम 25 से 30 सेमी हो।
- मेढ़ की चौड़ाई आधा फीट के आसपास हो।
पौध तैयार करना
काली हल्दी (Black Turmeric) की रोपाई इसकी पौध तैयार करके भी की जा सकती है, इसकी पौध तैयार करने के लिए इसके कंदों की रोपाई ट्रे या पॉलीथिन में मिट्टी भरकर की जाती है।
इसके कंदों की रोपाई से पहले बाविस्टीन की उचित मात्रा से उपचारित कर लें, इसके कंद नर्सरी में रोपाई के दो माह बाद खेत में रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं ।
एक हेक्टेयर में 1100 पौधे लगते हैं, पौधों की रोपाई बारिश के मौसम के शुरूआत में की जाती है।
काली हल्दी की खेती मे सिंचाई कब करे
काली हल्दी के पौधों को ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, इसके कंदों की रोपाई नमी युक्त भूमि में की जाती है। इसके कंद या पौध रोपाई के तुरंत बाद उनकी सिंचाई कर दें।
हल्के गर्म मौसम में इसके पौधों को 10 से 12 दिन के अंतराल में पानी दें जबकि सर्दी के मौसम में 15 से 20 दिन के अंतर पर सिंचाई करें।
खाद उर्वरक का छिड़काव
खेत की तैयारी के समय आवश्यकतानुसार पुरानी गोबर की खाद मिट्टी में मिलाकर पौधों को दें, प्रति एकड़ 10 से 12 टन सड़ी हुई गोबर खाद मिलायें, घर पर तैयार किये गये जीवामृत को पौधों की सिंचाई के साथ दें।
हल्दी मे खरपतवार नियंत्रण कैसे करे
खरपतवार नियंत्रण निंदाई गुड़ाई कर किया जाता है, पौधों की रोपाई के 25 से 30 दिन बाद हल्की निंदाई गुड़ाई करें। खरपतवार नियंत्रण के लिए 3 गुड़ाई काफी हैं, प्रत्येक गुड़ाई 20 दिन के अंतराल पर करें। रोपाई के 50 दिन बाद गुड़ाई बंद कर दें नहीं तो कंदों को नुकसान होता है।
मिट्टी चढ़ाना : रोपाई के दो माह बाद पौधों की जड़ों में मिट्टी चढ़ा दें। हर एक से दो माह बाद मिट्टी चढ़ायें।
काली हल्दी के कंदों की खुदाई
इसकी फसल रोपाई के ढाई सौ दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है, कंदों की खुदाई जनवरी से मार्च तक की जाती है।
कितनी पैदावार होती है
काली हल्दी की पैदावार दो से ढाई किलो प्रति पौधा होना अनुमानित है, एक हेक्टेयर में 1100 पौधे लगते हैं, जिनसे 48 टन पैदावार होती है, प्रति एकड़ लगभग 12 से 15 टन पैदावार होती है जो सूखकर 1 से 1.5 टन रह जाती है।
कंद और पौधों की पहचान
काली हल्दी के कंद या राईजोम बेलनाकार गहरे रंग के सूखने पर कठोर क्रिस्टल बनाते हैं, राइजोम का रंग कालिमायुक्त होता है। इसका पौधा तना रहित शाकीय व 30 से 60 सेमी ऊंचा होता है।
पत्तियाँ चौड़ी भालाकार ऊपर सतह पर नीले बैंगनी रंग की मध्य शिरायुक्त होती हैं, पुष्प गुलाबी किनारे की ओर सहपत्र लिये होते हैं।
काली हल्दी के फायदे
ऐसे तो काली हल्दी बहुत अधिक फायदेमंद है, क्योकि इसका उपयोग कई बीमारियो के लिए किया जाता है, ओर इसके सेवन करने से कई प्रकार के फायदे है, आइये जानते है इसके क्या – क्या फायदे है –
लिवर व अल्सर के इलाज मे
ये आपके लिवर को डिटॉक्स करने का काम करती है, साथ ही आपके लिवर से संबंधित कई सारी बीमारियों से भी बचाता है, इसके सेवन से अल्सर की समस्या भी दूर होती है।
शरीर की सूजन को कम करने मे
शरीर के सूजन को कम करने के लिए भी हल्दी का इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि इसमें एंटी इन्फ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं, जो कि मालक्यूल को ब्लॉक करके सूजन को कम करता है.
अनियमित पीरियड्स की परेशानी मे
अगर आपको अनियमित पीरियड्स की परेशानी है, तो इसके लिए आप काली हल्दी को कुछ दिन तक दूध मे मिलाकर पिएं, इससे आपकी ये परेशानी खत्म हो जाएगी।
कैंसर उपचार मे
चीनी चिकित्सा में काली हल्दी का इस्तेमाल कैंसर का इलाज करने के लिए किया जाता है, शोधकर्ताओं के मुताबिक, नियमित इसका सेवन करने से कोलन कैंसर का खतरा भी काफी कम रहता है।
ऑस्टियो आर्थराइटिस इलाज मे
ये जोड़ों में दर्द और जकड़न पैदा करने वाली बीमारी है, जो आपकी हड्डियों के आर्टिकुलर कार्टिलेज को नुकसान पहुंचाती है, वहीं, हल्दी में इबुप्रोफेन होता है, जो इससे बचाव में कारगर है।
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