बकरी एक बहुउपयोगी पशु है, जो अपने छोटे कद हर तरह की जलवायु में रहने की क्षमता तथा रहन-सहन की आसान आदतों के कारण सभी वर्ग बकरी पालन करते है । बकरी पालन व्यवसाय (Goat Farming) कम पूंजी एवं कम साधन से आरम्भ कर परिवार के भरण पोषण के लिये नियमित आय प्राप्त की जा सकती है।
पशुपालक द्वारा बकरियों के उचित रखरखाव संतुलित पोशाहार और बेहतर प्रबंधन के द्वारा बकरियों को रोगग्रस्त होने से बचाकर दुधारू बकरियों को बेचकर, ऊन व खाल द्वारा प्राप्त आय, बकरों को मांस के रूप में बेचकर, मिंगनियों को खाद के रूप में बेचकर आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
बकरी की मुख्य नस्लें (Best Breeds of goat)
मुख्य रूप से सिरोही, मारवाड़ी, जखराना नस्ल की बकरियां पायी जाती है, बकरी की अच्छी नसलों (Top Breeds of goat) मे जामुनपरी, बीटल, सिरोही, बरबरी आदि नस्ले है।
व्यावसायिक बकरी पालन (Goat Farming) आरंभ करते समय बकरी की नस्ल का चयन एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, बकरी प्रजाति का चयन, बकरी पालन का उद्देश्य, क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति, जलवायु, उपलब्ध चारा-दाना बाजार मांग पर निर्भर करता है।
सामान्यतः यह ध्यान देना चाहिए कि बकरी की नस्ल उसी जलवायु से हो जहां व्यवसाय शुरू करना है। बकरी पालन के लिए अच्छी नस्ल के प्रजनक बकरे बाहर से लाकर स्थानीय बकरियों से गर्भाधान कर नस्ल सुधार का कार्य किया जा सकता है।
कर्ज लेने वाले किसानों के लिए महत्वपूर्ण सूचना
प्रायः देखा गया है कि – जो बकरी अधिक मेमने देती है, उसके मेमने कम वजन के होते हैं। दूसरी ओर जो बकरी कम मेमने देती है, उसके मेमने बड़े तथा अधिक वजन वाले होते हैं, इस प्रकार सभी प्रजातियां लगभग समान लाभ देती हैं।
बकरीयो के लिए उचित आवास व्यवस्था
बकरी की आदर्श आवास सुविधा हेतु बाड़े में कुछ स्थान पर छायादार व कुछ स्थान पर खुला हों, जिसमें चारे एवं पानी उपलब्ध हो।
बकरी का बाड़ा इस प्रकार बनायें ताकि सूर्य की सीधी गर्मी से बचा जा सकें, बकरियों को खड़े रहने के लिये प्रति वयस्क के हिसाब से 1-1.5 वर्ग मीटर स्थान हो।
बकरीयो के लिए आहार कैसा हो (Diet for goats)
बकरी लगभग सभी प्रकार की वनस्पति खा सकती है, बकरी पेड़ों की पत्तियों से लेकर घास तक चरती है, बकरियों में रेशेदार चारों को पचाने की अधिक क्षमता होती है।
चरने के अलावा बकरियां बबूल, आम, जामुन, खेजड़ी, नीम, बेर की पत्तियां खाना पसंद करती है। बकरियां रिजका व बरसीम भी खाना पसन्द करती है, बकरियों को प्रोटीन से भरपूर राशन दें, दाना मिश्रण में दाना अवयव इस प्रकार है:-
दाना अवयव प्रतिशत
- चना – 15 प्रतिशत
- जौ या मक्का – 37 प्रतिशत
- मूंगफली या खल – 25 प्रतिशत
- गेहूं का चोकर – 20 प्रतिशत
- खनिज लवण – 2.5 प्रतिशत
- साधारण नमक -0.5 प्रतिशत
बकरियों में प्रजनन – Breeding in goats
- सामान्यतया बकरी 8-12 माह की उम्र में गर्मी में आने लगती है।
- अच्छे दुग्ध उत्पादन व शारीरिक भार में वृद्धि परिणाम के लिये बकरियों को 15-18 माह में ही गर्भित करवायें तथा
- इस आयु तक बकरी का वजन 22-25 किग्रा. हो।
- बकरियों में मदकाल लगभग 24-48 घण्टों का होता है।
- ताव में आने के 34-36 घण्टे बाद गर्भित करवायें। इस दौरान यदि गर्भ ना ठहरे तो बकरी 18-21 दिन बाद पुन: मदकाल में आ जाती है।
- बकरी का गर्भकाल 145-151 दिन होता है, सामान्यता हमारे यहां बकरियों को साल भर गर्भित करवाया जा सकता है।
- परन्तु प्रजनन के लिये एक समय होना चाहिये जिससे कि बच्चे पैदा होने के समय अच्छी चराई उपलब्ध हो।
- बरसात व ज्यादा ठंड न हो इससे बकरी का स्वास्थ्य ठीक रहने के साथ-साथ अधिक दूध उत्पादन से बच्चे की शारीरिक वृद्धि ठीक होगी तथा बच्चों में मृत्यु दर कम रहेगी।
प्रजनक बकरों का चयन –
- बकरे के जनक शुद्ध नस्ल के रहे हों तथा स्वयं भी शारीरिक रूप से स्वस्थ हों।
- बकरा किसी आनुवंशिक रोग से ग्रसित न हो एवं उसका वाहक भी न हो ।
- जनक उच्च प्रजनन क्षमता वाले रहे हों।
- इनकी सन्तानों में मृत्युदर का स्तर कम रहा हो।
- जनक में दूध, मांस या रेशे की उत्पादक क्षमता उच्च स्तरीय रही हो।
- बकरे में पूर्ण रूप से विकसित जननांग हों एवं उसकी प्रजनन क्षमता भी उच्च स्तरीय हो।
- वह विभिन्न उम्र सोपानों (जन्म, तीन माह, छह माह, नौ माह और बारह माह) पर अधिक भारधारक रहा हो।
- बकरा देखने में आकर्षक एवं क्षमतावान होना चाहिए।
बकरियों का स्वास्थ्य संरक्षण
अन्य जानवरों की तुलना में बकरी कम बीमार पड़ती है, लेकिन अधिक लाभ के लिये बकरी की नियमित देखभाल करना आवश्यक है।
बकरियों को वर्ष में तीन बार कृमिनाशक दवा पशुचिकित्सक की सलाह से निम्न प्रकार से पिलायें —
- वर्षा ऋतु से पूर्व (मई-जून) प्रथम खुराक।
- वर्षा ऋतु के बाद (सितम्बर- अक्टूबर) द्वितीय खुराक।
- बसंत ऋतु में (फरवरी-मार्च) तृतीय खुराक।
- टीकाकरण करवायें
- फड़कियां, माता रोग, मुंहपका-खुरपका।
मेमनों का प्रबंधन – Goat Farming
नीचे दिये गए बिन्दुओं पर ध्यान देकर बकरी पालक अधिक आमदनी प्राप्त कर सकते हैं, तथा बकरियों को स्वस्थ एवं रोगमुक्त रखकर अधिक मेमने भी प्राप्त कर सकते हैं।
- जन्म के उपरांत सर्वप्रथम नवजात मेमने के नथुनों को साफ कर उसे सामान्य रूप से सांस लेने में मदद करनी चाहिए।
- जन्म के पश्चात मेमने को उसकी मां के साथ रहने के लिए पहले से तैयार बाड़े में स्थानान्तरित कर देना चाहिए।
- मेमनों को सूखी-मुलायम घास की बिछावन वाले स्थान पर रखना चाहिए।
- बकरी ब्याने पर बच्चे की नाल दो इंच छोड़कर नये ब्लेड से काटकर टिंचर आयोडिन लगा देना चाहिए।
- नवजात मेमने को 30 मिनट के अंदर बकरी का पहला दूध (खीस) पिला देना चाहिए।
- दूध दो बार मेमनों को पिलाना अति उत्तम है।
- मेमनों को जन्म के पन्द्रह से बीस दिनों के अंदर सींग रहित कर सकते हैं।
बकरी पालन के लिए अनुदान
बकरी से किसान दूध और मांस के साथ-साथ बाल, खाल और रेशों का व्यवसाय भी कर सकते हैं, इसके अलावा बकरी के मूत्र का इस्तेमाल खाद के रूप में भी किया जाता है, बकरी पालन के व्यवसाय में शुरुआती लागत कम होती है, और इनके आवास व प्रबंधन पर भी कम खर्च आता है।
Subsidy for goat farming
बकरी पालन के लिए अनुदान : बकरी पालन में सरकार की ओर से भी मदद की जाती है, केंद्र और राज्य सरकार की ओर से 25 से 33 प्रतिशत तक का अनुदान मिलता है, बकरी पालन के सफल व्यवसाय के लिए जरूरी है कि – वे स्वस्थ और निरोगी रहें, अगर बकरियां बीमार हो जाएं तो तुरंत इलाज की सलाह दी जाती है ।
बकरियों में होने वाले रोग (Diseases of goats)
बकरियों में रोगों की रोकथाम के लिए समय पर टीकाकरण जरूरी है, अगर विशेषज्ञों की सलाह लेकर बकरी पालन किया जाए तो यह बहुत अधिक फायदेमंद व्यवसाय हो सकता है।
बकरियों मे होने वाली हर छोटी-बड़ी समस्या को लेकर समय-समय पर कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा मार्गदर्शन किया जाता है, वहाँ से भी किसान मदद ले सकते हैं।
बकरियों में कुछ रोग होने की आशंका ज्यादा रहती है –
बकरियों में चेचक रोग
चेचक रोग विषाणु से होने वाला संक्रामक रोग है, जो की सांस लेने या त्वचा के घांव के माध्यम से पशु के शरीर में पहुंचता है, इस बीमारी के लक्षण 2 से 7 दिन के अंदर सामने आने लगते हैं, यह बीमारी हो जाने पर स्वस्थ पशुओं को अलग कर दिया जाता है।
बकरियों में निमोनिया रोग
पानी में भिगने, ठंड लग जाने और अचानक मौसम के बदलने के कारण बकरियों मे निमोनिया रोग हो जाता है।
बकरियों में खुरपका-मुंहपका रोग
यह एक संक्रामक बीमारी है, और बकरी सहित सभी जानवरों में होने की आशंका रहती है, इस रोग में पीड़ित में पशुओं के मुंह और पैर में घांव होना पहला लक्षण है। इस रोग के होने पर स्वस्थ पशुओं को अलग कर देना चाहिए।
बकरी पालन है फायदेमंद
बकरी पालन का व्यवसाय छोटे, सीमांत और भूमिहीन किसानों (Farmers) के लिए एक बेहतर विकल्प है, इस व्यवसाय में कम स्थान, कम खर्च और सीमित देखभाल करके के भी मुनाफा कमाया जा सकता है।
यहीं कारण है कि बीते 5 साल में भारत में बकरियों की संख्या में इजाफा देखा गया है, हर 5 साल में होने वाली पशुगणना के आंकड़ों के अनुसार पशुधन में 4.6 फीसदी की वृद्धि हुई है।
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