हमारे देश में ऐसे बहुत से किसान है, जो प्याज और लहसुन की खेती करते हैं, ऐसे में इनमें लगने वाले रोगों और उनकी रोकथाम की पूरी जानकारी किसानों को होना आवश्यक है। तो आज हम आपको इस पोस्ट के माध्यम से इसकी संपूर्ण जानकारी देने जा रहे हैं, जिससे कि आप इनकी खेती आसानी से कर सकें और अच्छी पैदावार कर सके।
भारत में उगाई जाने वाली लहसुन और प्याज किसानों की एक बड़ी सफलता को दर्शाते हैं, आपको बता दें कि लहसुन और प्याज दोनों को अलग-अलग स्वाद के लिए उपयोग में लाया जाता है।
सब्जी , चटनी या अचार में सबसे अधिक उपयोग में लाया जाता है, साथ ही साथ लहसुन का उपयोग कई औषधीयो के रूप में भी किया जाता है।
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वही बात करें इनकी खेती की तो इन्हें रबी की फसल के तहत बोया जाता है, क्योंकि यह बारिश के मौसम में खराब हो जाती है, इसलिए इन्हें खरीफ की फसल में शामिल नहीं किया जा सकता ।
ऐसे में कई ऐसे रोग होते हैं, जो कि इनमें लग जाते हैं, और इन्हें खराब कर देते हैं, जिससे कि किसानों को बहुत हानि हो सकती है, ऐसे में इनमें लगने वाले रोगों का पता कर उनकी रोकथाम करना अति आवश्यक हो जाता है।
लहसुन और प्याज में लगाने वाले प्रमुख रोग और उन्हें रोकने के उपाय नीचे दिए गए हैं –
रैगलन रोग
यह एक ऐसा रोग होता है, जो पौधों की नर्सरी तैयार करते समय इनमें लग जाता है। जिससे कि पौधे मर जाते हैं। (इस रोग से समझौते से पहले और बाद में भी मर सकते हैं)
रैगलन रोग का प्रबंधन
इसकी रोकथाम के लिए आपको बीजों को नर्सरी में बोने से पहले इसके बीजों में ग्राम एमीसान या कप्तान या थीराम दवाई का प्रयोग करना चाहिए।
यह दवाई आप 1 किलो बीजों में मिलाकर कर सकते हैं, जिससे कि इसमें लगने वाला रैगलन रोग से प्याज लहसुन के बीजों को बचाया जा सके।
पर्पल ब्लोच
आपने देखा होगा कि जब आपके प्याज और लहसुन के पौधों के फूलों की डंडी पर और क्रेज पर गहरे भूरे धब्बे बन जाते हैं, इसे ही पर्पल ब्लोच रोग कहा जाता है, जिसमें जैसे जैसे समय बीतता जाता है, वैसे वैसे इन धब्बों का रंग भूरा और आकार बड़ा हो जाता है।
जिनसे की बाद में आप के बीजों को काफी नुकसान होता है, जब नमी का मौसम आता है, तब इन धब्बों का रंग काला हो जाता है, यह प्रक्रिया कवक तथा जीवाणु के कारण होती है।
और जब यह धब्बे बड़े हो जाते हैं, तो प्याज और लहसुन के पत्ते पीले पढ़कर सूख जाते हैं, ऐसे में बीजों का विकास नहीं हो पाता है।
पर्पल ब्लोच रोग का प्रबंधन
इस रोग से बचाने के लिए सबसे पहले आपको यह ध्यान में रखना चाहिए कि जब आप बीजों को बुवाई के लिए उपयोग करते हैं, तब आपको बीजों की अच्छी से जांच कर लेनी चाहिए साथ ही साथ जब आप इन बीजों की बुवाई करते हैं, तब आपको इन के साथ-साथ अन्य फसलें भी होनी चाहिए यह प्रक्रिया 2 से 3 साल तक कर सकते हैं।
साथ ही साथ प्याज से संबंधित चक्र में इसे शामिल नहीं किया जाना चाहिए। वही छिड़काव की बात करें तो आपको इस रोग की रोकथाम के लिए इन पौधों पर इण्डोफिल M-45 या कापर आक्सी क्लोराइड 400-500 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से 200-250 लीटर पानी में घोलकर तथा किसी चिपकने वाले पदार्थ (सैल्वेट-99, 10 ग्राम या ट्रिटान 50 मि.ली./100 ग्राम घोल) के साथ में 10-15 के अंतर पर छिड़काव करते रहना चाहिए।
डाउनी मिल्ड्यू (पेरोनोस्पोरा विनाशक)
यह लोग बहुत ही ज्यादा मात्रा में फसलों को नुकसान पहुंचाता है, यह एक प्रकार के फंगस के कारण उत्पन्न होती है।
इसमें आपको पौधे के पत्तों के ऊपर थोड़े बड़े आकार के पीले रंग के धब्बे दिखाई देंगे। जैसा कि इसका नाम है, डॉउनी वैसे यह पौधों के पत्तों के नीचे से शुरू होती है, यह संघर्षों के पत्तों के नीचे लग जाता है, जोकि धीरे-धीरे पत्तों की ऊपरी सतह पर भी आ जाता है।
डाउनी मिल्ड्यू रोग का प्रबंधन
जब हमारे खेतों में अच्छी किस्म के प्याजो के साथ-साथ कुछ जंगली प्याज भी रुक जाते हैं, तो उन्हें उसी टाइम नष्ट कर देना चाहिए साथ ही साथ जल निकासी के लिए उचित प्रबंध करना चाहिए।
इस रोग के लक्षण दिखाई देने पर मैन्कोजिब या रिडोमिल एम जैड 0.25 प्रतिशत (2.5 ग्राम लीटर पानी में घोल कर) का छिडकाव कर सकते हैं।
इसमें आपको 10 से 15 दिन के अंतराल पर 3से 4 छिडकाव की आवश्यकता होती है, और ध्यान रखें इसने चिपकने वाला पदार्थ अवश्य मिला लें।
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