केले के बारे में कहा जाता है, कि इसकी खेती सही ढंग से करें तो मुनाफा कई गुना तक बढ़ जाता है। सही खेती के लिए कहा जाता है कि पौधे से पौधे के बीच का गैप 6 फीट होना चाहिए।
इस लिहाज से एक एकड़ में 1250 पौधे आसानी से और सही ढंग से बढ़ते हैं। पौधों के बीच की दूरी सही हो तो फल भी सही और एकसमान आते हैं।
लागत की जहां तक बात है, तो प्रति एकड़ डेढ़ से पौने दो लाख रुपये तक आती है। बेचने की बात करें तो एक एकड़ की पैदावार 3 से साढ़े तीन लाख रुपये तक में बिक जाती है। इस लिहाज से एक साल में डेढ़ से दो लाख रुपये तक का मुनाफा हो सकता है।
बिहार के साथ साथ उत्तर भारत में सामान्यतः उत्तक संवर्धन या सकर्स द्वारा केला जून जुलाई अगस्त में लगाए जाते है, जो इस वक्त 60 से 90 दिन के एवं कुछ 120 दिन के हो गए है।
किसान जानना चाह रहा है, की इस समय क्या करना चाहिए. सूत्रकृमि को नियंत्रित करने के लिए 40 ग्राम कार्बोफ्यूरॉन /पौधे की दर से प्रयोग करें। गुड़ाई और निराई करने के बाद उर्वरकों की पहली खुराक @ 100:300:100 ग्राम यूरिया, सुपर फॉस्फेट और एमओपी क्रमशः प्रति पौधा पौधे लगभग 30 सेमी दूर बेसिन में डालें…
भारत में लगभग 500 किस्में उगायी जाती हैं, लेकिन एक ही किस्म का विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न नाम है। राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के पास केला की 79 से ज्यादा प्रजातियां संग्रहित हैं। केला का पौधा बिना शाखाओं वाला कोमल तना से निर्मित होता है, जिसकी ऊचाई 1.8 मी0 से लेकर 6 मी0 तक होता है।
इसके तने को झूठा तना या आभासी तना कहते हैं, क्योंकि यह पत्तियों के नीचले हिस्से के संग्रहण से बनता है। असली तना जमीन के नीचे होता है, जिसे प्रकन्द कहते हैं इसके मध्यवर्ती भाग से पुष्पक्रम निकलता है।
ये सकर पतली व नुकीली पत्तियों वाले (तलवार की तरह) होते है. देखने में कमजोर लगते है, परन्तु प्रवर्धन के लिए अत्यधिक उपयुक्त होते हैं।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा , समस्तीपुर बिहार के प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय समन्वित फल अनुसंधान परियोजना के प्रोफेसर सह मुख्य वैज्ञानिक( प्लांट पैथोलॉजी) एसोसिएट डायरेक्टर रीसर्च डाक्टर एस के सिंह टीवी 9 डिजिटल के जरिए किसानों को इसकी बारिकी समझा रहे है।
केले की खेती से जुड़ी 7 टिप्स
(1) डाक्टर एस के सिहं के मुताबिक अगर आप का केला का पौधा चार महीने का हो गया हो तो उसमे एज़ोस्पिरिलम (azospirillum)और फॉस्फोबैक्टीरिया(phosphobacteria) @ 30 ग्राम और ट्राइकोडर्मा विराइड(trichoderma viride) @ 30 ग्राम 5-10 किलोग्राम खूब सड़ी कंपोस्ट या गोबर की खाद /पौधा की दर से प्रयोग करें।
(2) रासायनिक उर्वरकों और जैव उर्वरकों के प्रयोग के बीच कम से कम 2-3 सप्ताह का अंतर होना चाहिए. मुख्य पौधे के बगल में निकल रहे पौधो (Side Duckers) को जमीन की सतह से ऊपर काटकर यदि संभव हो तो 2 मिली मिट्टी का तेल डालकर समय-समय पर हटाते रहना चाहिए।
(3) डाक्टर एस के सिंह बताते हैं कि अगर खेत में कोई विषाणु रोग से प्रभावित पौधे दिखाई दें तो उसे तुरंत हटा दें और नष्ट कर दें और विषाणु फैलाने वाले कीट वाहकों को मारने के लिए किसी भी प्रणालीगत (Systemic)कीटनाशक का छिड़काव करें।
(4) जब केला का पौधा पांच महीने का हो जाय तब उर्वरकों की दूसरी खुराक 150:150 ग्राम यूरिया और एमओपी + 300 ग्राम नीमकेक प्रति पौधा पौधे से लगभग 45 सेमी दूर बेसिन में डालें. सूखे एवं रोग ग्रस्त पत्तों को नियमित रूप से काट कर खेत से बाहर निकालते रहना चाहिए ।
(5) उर्वरक देने से पूर्व हल्की गुड़ाई और निराई करना चाहिए. पौधे की सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकता को पूरा करने और उनकी कमी को दूर करने के लिए प्रति पौधे 50 ग्राम कृषि चूना और 25 ग्राम मैग्नीशियम सल्फेट(magnesium sulfate) का प्रयोग करें।
(6) डॉक्टर सिंह के मुताबिक अंडे देने और स्टेम वीविल(stem weevils) के आगे हमले को रोकने के लिए, ‘नीमोसोल'(nemosol) @ 12.5 मिली / लीटर या क्लोरपाइरीफॉस(chlorpyrifos) @ 2.5 मिली / लीटर को तने पर स्प्रे करें।
(7) कॉर्म और स्टेम वीविल की निगरानी के लिए, 2 फीट लंबे अनुदैर्ध्य स्टेम ट्रैप @ 40 ट्रैप/एकड़ को विभिन्न स्थानों पर रखा जा सकता है.एकत्रित घुन को मिट्टी के तेल से मार देना चाहिए. केले के खेतों के साथ-साथ आसपास के क्षेत्रों को खरपतवार मुक्त रखें और कीट वाहकों को नियंत्रित करने के लिए प्रणालीगत कीटनाशकों का छिड़काव करें।
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