इस समय देश के बड़े हिस्से में गेहूं की बुवाई की गई है, परंतु इन दिनों कुछ राज्यों में बारिश भी हो रही है। ऐसे में मौसम में अधिक नमी होने के कारण गेहूं में कई प्रकार के रोग देखने को मिल रहे हैं, और गेहूं की पत्तियां भी पीली पड़ रही है, इस पोस्ट में हम गेहूं मे पीलेपन का कारण और अन्य रोग के बारे में जानेंगे।
खरीफ सीजन से ज्यादा खुश नहीं किसान
किसानों के लिए 2022 का खरीफ सीजन कुछ ज्यादा अच्छा नहीं रहा क्योंकि इस सीजन में किसानों ने बारिश का कहर और सूखे दोनों की चपेट देखी है। जिससे किसान के फसल पूरी बर्बाद हो गई इसके बाद भी कड़ाके की ठंड और अत्यधिक पाला पड़ जाने के कारण फसलों को बहुत अधिक मात्रा में नुकसान पहुंचा है।
किसानों को सात रहा यह डर
यदि इस समय की बात करें तो देश के अलग-अलग हिस्सों में तेज हवा के साथ बारिश भी हो रही है। ऐसी स्थिति में किसानों को यह डर परेशान कर रहा है कि – अत्यधिक बारिश हो जाने से कहीं उनकी फसल बर्बाद ना हो जाए।
फसलों में नमी से होता है रतुआ रोग
यह ठंड का समय है, और कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि ज्यादातर फसलों में इसी समय पर रतुआ रोग लगता है। रतुआ रोग पीला, भूरा व काला यह तीन प्रकार का होता है, जो की अक्सर फसलों में देखने को मिलता है।
विशेषज्ञों का कहना है, कि सबसे अधिक फसलों को नुकसान पीला या धारीदार रतुआ रोग से होता है। इस रोग में गेहूं और जो फसल की पत्तियों पर छोटे-छोटे पीले रंग के कतारों में धब्बे बन जाते हैं, और इन धब्बों पीआर पीला चूर्ण सा कुछ दिखाई देने लगता है।
यदि आप फसल के बीच से गुजर रहे हैं, तो यह आपके कपड़ों पर भी लग जाता है, और हाथ से छूने पर हाथ भी पीले हो जाते हैं।
पीली पत्ती होने के अन्य कारण
वैसे तो विशेषज्ञों का कहना है, कि जब पौधों की पत्तियां पीली पड़ जाती है तो रतुआ रोग हो जाता है यह इस रोग के लक्षण है, परंतु ऐसा जरूरी नहीं है कि जब पौधों की पत्तियां पीली पड़ जाए तो रतुआ रोग ही हुआ है।
पौधों की पत्तियां पीली होने के अन्य और भी कई कारण भी है जैसे की पौधों में पोषक तत्वों की कमी होना।
पौधों में पीला रतुआ रोग होने पर पत्तों पर पीले या संतरी रंग के धारियां देखने को मिलती है, इस रोग की पहचान करने के लिए किसान बंधु अपने खेत मैं जाकर पौधे की पत्तियों को अपनी उंगली और अंगूठे के बीच में रखकर रगड़े तो उस पर उपस्थित फफूंद के कण उंगली और अंगूठे पर चिपक जाते हैं।
जबकि जब पौधे में पोषक तत्वों की कमी होती है, तब ऐसा नहीं होता है।
इस रोग से बचाव कैसे करें
यदि आपको आपके खेत में रतुआ रोग देखने को मिलता है, तो इसका निवारण फफूंद नाशक और कीटनाशकों का प्रयोग करके किया जा सकता है।
इससे बचाव हेतु प्रोपकोनाजोल 200 मिलीलीटर को 200 लीटर पानी में मिलाकर अपनी फसलों पर छिड़काव करना चाहिए। यदि आपको लगता है कि फसल में यह बीमारी ज्यादा बढ़ गई है, तो इन्हीं दवाइयों का दोबारा स्प्रे कर दे।
किसान भाइयों को बता दें कि यह रोग अक्सर दिसंबर से लेकर मार्च के अंत तक दिखाई देता है, यह रोग अधिकतर HD 2967, HD 2851, WH 711 प्रजातियों में होने की संभावना अधिक होती है। जब तापमान 10 से 15 डिग्री सेल्सियस के मध्य में रहता है, तब इस रोग के होने संभावना बढ़ जाती है।
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