पेड़ पौधे पर्यावरण के लिए बेहद जरूरी है इनकी रक्षा करना हम भी का कर्तव्य है. इसके साथ ही नये पेड़ भी सभी को लगाने चाहिए. ताकि उसका मुनाफा सभी को हो।
ओडिशारे जाजपुर में एक ऐसे की रिटार्यड फौजी है, जो एक लाख फलदार वृक्ष लगाने के संकल्प के साथ कार्य कर रहे हैं. 15 साल उनके द्वारा लगाये गये आम के पेड़ों से कई घरों को चूल्हे जल रहे हैं।
उनके द्वारा किये गये कार्य का लाभ लोगों को मिल रहा है. जाजपुर के रिटायर्ड फौजी का नाम खिरोद जेना है ।
पौधो भरा लेकर हर सुबह घर से निकल जाते हैं
आम तौर पर लोगों की शुरुआत ऑफिस जाने के लिए होती है. लोग अपने बैग में लंच बॉक्स डालकर ऑफिस के लिए निकलते हैं पर खिरोद जेना के दिन कि शुरुआत पौधे भरे थैले से होती है।
खिरोद जेना रोज सुबह छह बजे अपने दुपहिया वाहन पर खाली जमीन की तलाश में पौधे का थैला लेकर निकल पड़ते हैं, उपयुक्त जगह मिलने पर, वह एक पौधा लगाते है और उसे मवेशियों से बचाने के लिए उसके चारों ओर एक बांस की बाड़ बनाते है।
पिछले 16 साल से उनका यही रूटीन है और वो अभी भी थके नहीं हैं।
अब तक लगा चुके हैं 20,000 फलदार पौधे
बाराछाना प्रखंड के कलाश्री गांव के रहने वाले 54 वर्षीय जेना पूर्व फौजी हैं और जाजपुर को हरा-भरा करने के मिशन पर हैं. 2005 में सेवानिवृत्त होने के बाद से, जेना ने बाराचना ब्लॉक के 11 गांवों में सार्वजनिक स्थानों और सड़कों पर आम, अमरूद, जामुन और कटहल सहित 20,000 फलदार पेड़ लगाए हैं. इस साल मानसून के दौरान उन्होंने फलदार पौधों के 600 पौधे लगाए हैं।
स्थानीय शिक्षक से प्रेरित होकर शुरू किया अभियान
न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक एक स्थानीय शिक्षक किशोर चंद्र दास से प्रेरित होकर, जेना ने भारतीय सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद पेड़ लगाने का फैसला किया।
किशोर चंद्र दास ने इस क्षेत्र में इसी तरह की पहल शुरू की थी, उन्होंने कहा कि जब मैंने 1985 में भारतीय सेना में शामिल होने के लिए अपना गांव छोड़ा, तो वहां सैकड़ों पेड़ थे. लेकिन जब मैं 20 साल बाद लौटा, तो मैंने पाया कि पूरे क्षेत्र की हरियाली खत्म हो गई थी।
बंजर जमीन पर भी लगाये पेड़
जेना ने कलाश्री, गजेंद्रपुर, रायपुर, पार्थपुर, फकीरमिया पटना, सौदिया, बारापड़ा, बेंगापुर, कंपागढ़, हलधरपुर, नियाली और तालुआ गांवों में सड़कों, नदी तटबंधों और बंजर भूमि पर फलदार पेड़ लगाकर शुरुआत की. इसके अलावा, उन्होंने बहाडीहा पहाड़ी पर सैकड़ों पेड़ लगाए हैं जो एक दशक पहले तक बंजर थी।
आम बेचकर जीवन-यापन कर रहे है स्थानीय लोग
वह अपनी पेंशन राशि से इन पौधों का रखरखाव और पोषण करते है,
जेना अपनी पेंशन से हर महीने लगभग 10,000 रुपये पौधे, रोपण और बाड़ लगाने की सामग्री, उर्वरक और खाद खरीदने के लिए खर्च करते हैं।
उन्होंने कहा, “मैंने 15 साल पहले जो आम के पेड़ लगाए थे, उनमें फल लगने लगे हैं. स्थानीय लोग आमों को इकट्ठा कर बाजार में बेचकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं. उनका लक्ष्य एक लाख से अधिक फलदार पेड़ लगाना है, और तब तक, उन्हे कोई रोक नहीं सकता है।
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