हाइड्रोजेल तकनीक से कम पानी मे भी होगी खेती

हाइड्रोजेल तकनीक : उचित समय पर सिंचाई नहीं होने के कारण किसानों को कई खेती -बड़ी (Farming) में कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, इसके कारण किसान की पैदावार भी प्रभावित होती है, पर कृषि वैज्ञानिकों ने खेतों की सिंचाई करने की एक अनोखी तरकीब निकाली है, जिसका नाम हाइड्रोजेल (Hydrogel Technique) है।

हाइड्रोजेल तकनीक (Hydrogel) क्या है ?

हाइड्रोजेल एक प्रकार का जेल यानी की गोंद होता है, ये आमतौर पर ग्वार के गोंद या इससे बने पाउडर से बनाई जाती है। इस तकनीक को झारखंड की राजधानी रांची स्थित भारतीय राष्ट्रीय राल एवं गोंद संस्थान में विकसित किया गया है।

हाइड्रोजेल तकनीक सिंचाई के लिए कैप्सूल या टैबलेट के रूप में उपयोग किया जाता है।

  • इसमें गजब के जल धारण करने की क्षमता होती है,
  • इसको पानी में मिलाते ही ये ज्यादा से ज्यादा मात्रा में पानी को अपने अंदर सोख लेता है।
  • इसे पौधों के जड़ों के पास लगाया जाता है, ताकि जड़ों तक सूखे मौसम में पानी आसानी से पहुंच सकें।
  • सूखे क्षेत्रों के किसानों के लिए ये किसी वरदान है।

कम खर्च में जल संकट से छुटकारा

कोई किसान हाइड्रोजेल (Hydrogel) का इस्तेमाल करना चाहता है, तो एक एकड़ खेत के लिए महज एक किलोग्राम हाइड्रोजेल के ग्रेन्यूल की जरूरत होती है, जिसकी कीमत लगभग 1000 से 1200 रूपये होती है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित पूसा हाइड्रोजेल बारीक कंकड़ों जैसा होता है।

इसे फसल की बुवाई  के समय ही बीज के साथ खेतों में मिलाकर डाला जाता है, जब फसल की पहली सिंचाई की जाती है तो पूसा हाइड्रोजेल पानी को सोखकर 10 मिनट में ही फूल जाता है और जैल में बदल जाता है । 

जैल में बदला यह हाइड्रोजेल गर्मी या तापमान से सूखता नहीं है, क्योकि यह पौधों की जड़ों से चिपका रहता है, इसलिए पौधा अपनी जरूरत के हिसाब से जड़ों के माध्यम से इस हाइड्रोजेल का पानी सोखता रहता है। 

Hydrogel-Irrigation

हाइड्रोजेल तकनीक से क्या फायदा

हाइड्रोजेल तकनीक की खासियत यह है कि – इसे एक बार खेत में डाल देने के बाद साल भर सूखे के मौसम में खेती करने में किसानों को परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ेगा।

इसके अलावा इस तकनीक के कोई साइडइफेक्ट भी नहीं है, इसलिए किसानो के लिए यह तकनीक बहुत ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकती है।

30 प्रतिशत अधिक पैदावार – Hydrogel Technique

हाइड्रोजेल तकनीक (Hydrogel Technology) से सिंचाई कर किसान कम लागत और कम पानी में भी अपनी फसलों से अधिक पैदावार ले सकते हैं।

एक अनुमान के मुताबिक, अपनी फसलों में इस सिंचाई तकनीक के इस्तेमाल से 30 फीसदी तक अधिक पैदावार ली जा सकती है।

सूखे के मौसम में भी होगी खेती

इस तकनीक से सूखे के समय भी सिंचाई की जा सकती है, यानी आप अपने खतों में इस तकनीक का एक बार इस्तेमाल कर लगभग 8 महीने तक इसका लाभ ले सकते हैं।

मतलब साफ है कि – सूखे के मौसम में भी खेती करने में किसानों को परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ेगा।

पर्यावरण पर कोई बुरा असर नहीं

इस तकनीक की सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि – ये बायो-डीग्रेडेबल यानी पर्यावरण अनुकूल होती है, इसको इस्तेमाल करने से किसी भी प्रकार का कोई प्रदूषण नहीं होता हैं।

यही नहीं इसकी मदद से खेत और आस-पास के इलाकों में भूजल स्तर को भी बेहतर बनाया जा सकता है, क्योंकि इसके इस्तेमाल से 50 से 70 फीसदी तक पानी को मिट्टी में रोका जा सकता है।

हाइड्रोजेल तकनीक का इस्तेमाल ऐसे करे

जो किसान इस तकनीक को इस्तेमाल करना चाहते हैं वह इन स्टेप्स को फॉलो करे –

  • वो सबसे पहले खेत की अच्छी जुताई करा लें।
  • इसके बाद खेत में प्रति एकड़ एक से चार किलोग्राम हाइड्रोजेल का भुरकाव करें।
  • फिर उसमें फसल लगा सकते हैं।
  • इसके अलावा बागवानी की खेती में पौधों के जड़ के पास हल्का गड्ढा करके हाइड्रोजेल को डाल दें।

यहां भी हाइड्रोजेल पानी सोखने और सूखे के वक्त नमी छोड़ने की पद्धति पर कार्य करता है, किसान इसे बीज दुकान के अलावा ऑनलाइन भी ऑर्डर करके मंगा सकते हैं।

आईआईएनआरजी (IINRG) के वैज्ञानिक बताते हैं कि – सूखाग्रस्त क्षेत्रों के किसानों के लिए यह तकनीक काफी फायदेमंद साबित हो सकती है, इसके इस्तेमाल से किसान एक फसल आराम से ले सकते हैं।

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