जुलाई के महीने मे मक्का की उन्नत खेती से पाएं भरपूर पैदावार!

मक्का की खेती (maize farming) करने वाले किसानों के लिए सलाह देश के कई राज्यों में मक्का की खेती प्रमुखता से की जाती है। ऐसे में किसान किस तरह कम लागत में मक्का की अधिक पैदावार प्राप्त कर सकें इसके लिए समय-समय पर कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा सलाह जारी की जाती है। जुलाई माह में किये जाने वाले क्रियाकलाप से उन्हें मक्का की खेती करने के लिए समाधान मिलता है।

मक्का की खेती करने वाले किसानों के लिए जरूरी सलाह

मक्का की खेती (maize farming) के लिए उत्तम जल निकास वाली बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। सिंचाई क्षेत्रों में मक्का की बुआई (planting corn) मानसून आने के 10–15 दिनों पहले कर देनी चाहिए। इसके विपरीत, वर्षा आधारित क्षेत्रों में सामान्यत: वर्षा के आने पर ही मक्का की बुआई की जाती है। यदि अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में हो तो, मेड़ बनाकर उनके ऊपर मक्का की बुआई करनी चाहिए, जबकि कम वर्षा वाले क्षेत्रों में कुंड में बुआई करनी चाहिए।

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इस तरीके से, नवीनतम ज्ञान और अलग अंदाज में, मक्का की खेती (maize farming) करने वाले किसानों को समझाया गया है कि वे किस तरह अधिक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं और समय-समय पर कृषि वैज्ञानिकों से लिए गए सलाह का उपयोग कर सकते हैं। मक्का की खेती (maize farming) उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो इस फसल के उत्पादन में रुचि रखते हैं, और यह सलाह उन्हें सफलता की दिशा में मदद कर सकती है।

मक्का की नई विकसित उन्नत किस्में निम्नलिखित हैं:

  • पूसा जवाहर, संकर मक्का 1, एचएम 4, उन्नत पूसा एचएम 4,
  • उन्नत पूसा एचएम 8,  उन्नत पूसा एचएम 9, पीईएचएम 3, 
  • पीईएचएम 5, पीईएचएम 2, प्रकाश, केडीएम – 438,
  • कड़ीएचएम – 017, एस 6217, एलजी 32 – 81,
  • एनएससीएच – 12, केएमएच 218 प्लस,
  • केएमएच – 3426, केएमएच 3712,
  • एनके – 30, एनके 6240, एसएमएच – 3904,
  • जेकेएमएच – 502 आदि प्रमुख हैं।

मक्का की प्रोटीनयुक्त प्रजातियां निम्नलिखित हैं:

  1. उन्नत पूसा विवेक
  2. क्यूपीएम 9
  3. एचक्यूपीएम 1
  4. एचक्यूपीएम 4
  5. एचक्यूपीएम 5
  6. एचक्यूपीएम 7
  7. शक्तिमान 1
  8. शक्तिमान 2
  9. शक्तिमान 3

ये प्रजातियां उन क्षेत्रों में बोनी जानी चाहिए जहां सिंचाई उपलब्ध हो और बुआई का समय सही हो सकता है। इन किस्मों का चयन किसानों को अधिक पैदावार के साथ अधिक लाभ प्रदान करने के लिए किया जा सकता है।

मक्का खेती: बुआई के समय खाद डालने का सही तरीका

मक्का की बुआई के लिए बीज बोने की सुझाई गई दरें इस प्रकार हैं:

  1. संकुल प्रजातियों के लिए: 20–22 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
  2. संकर प्रजातियों के लिए: 18–20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
  3. देसी छोटे दाने वाली प्रजाति के लिए: 16–18 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर

मक्का के पौधों की दूरी को आम तौर पर 75 x 20 से.मी. या 60 x 25 से.मी. रखा जाता है। अगर बेबी कॉर्न व पॉप कॉर्न के लिए बुआई की जा रही है तो पौधों के बीच की दूरी को 60 x 20 से.मी. उचित माना गया है।

बीज बोने से पहले, यदि शोधित नहीं किया गया है, तो 1 किलोग्राम बीज के लिए 2.5 ग्राम थीरम या 2.0 ग्राम कार्बेन्डाजिम का उपयोग करके शोध कर लें। दीमक का प्रकोप होने वाले क्षेत्रों में, आखिरी जुताई पर 20 ई.सी. की 2.5 लीटर मात्रा के क्लोरपाइरीफांस को 5.0 लीटर पानी में घोलकर 20 किलोग्राम बालू में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई से पहले मृदा में मिला दें।

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यह निर्देश उन किसानों के लिए महत्वपूर्ण है जो मक्का खेती (maize farming) करना चाहते हैं और उन्हें सही तरीके से बुआई करने के लिए जानकारी चाहिए।

मक्का में खरपतवार के लिए निम्नलिखित निर्देश उपयुक्त होते हैं

  1. पहली निराई अंकुरण के 15 दिन बाद खरपतवार नियंत्रण करें।
  2. दूसरी निराई 35–40 दिनों बाद खरपतवार करना चाहिए।
  3. मध्यम भारी मृदा में एट्राजीन का प्रयोग 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर करें और हल्की मृदा में 1.25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर करें।
  4. बुआई के तुरंत 2 दिनों में 500 लीटर पानी में एट्राजीन को मिलाकर छिड़काव करें।

यह शाकनाशी से एक वर्षीय घासकुल और चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार को प्रभावी रूप से नियंत्रित कर सकता है। इस रसायनिक उपाय से पत्तरचटा भी नष्ट हो जाता है। जहां पत्तरचटा की समस्या नहीं है, वहां पर बुआई के दोनों दिनों के अंदर एलाक्लोर 5 लीटर/ हेक्टेयर का प्रयोग करना आवश्यक होता है।

हार्डी खरपतवारों जैसे कि वन पट्टा और रसभरी को नियंत्रित करने के लिए बुआई के दो दिनों के अंदर एट्राटाफ 600 ग्राम/एकड़ या स्टाम्प 30 ई.सी. या ट्रेफ्लान 48 ई.सी. (ट्रेफ्लुरेलिन) प्रत्येक 1 लीटर/एकड़ को अच्छी तरह से मिलाकर 200 लीटर पानी के साथ प्रयोग करने से अच्छे परिणाम मिलते हैं।

यह उपाय मक्का के खरपतवार नियंत्रण के लिए आपके लिए सहायक साबित हो सकता है और आपको अधिक उत्पादन के प्राप्ति में मदद कर सकता है।

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