मटर की फसल में अधिक उत्पादन की तकनीकें

मध्यप्रदेश में मटर की खेती ज्यादातर से रायसेन, टीकमगढ़, दतिया, ग्वालियर, मण्डला, सिहोर, पन्ना दमोह, सागर, सतना आदि जिलों में की जाती है । मटर की खेती सब्जी और दाल के लिये उगाई जाती है।

मटर दाल की आवश्यकता की पूर्ति के लिये पीले मटर का उत्पादन करना अति महत्वपूर्ण है, जिसका प्रयोग दाल, बेसन एवं छोले के रूप में अधिक किया जाता है ।

मटर की खेती मे बुआई का समय

रबी में

बुआई का समय – 1 सितंबर से 30 नवंबर के बीच

फसल अवधि – 100 से 130 दिन


तापमान , मिट्टी की तैयारी व खेत की जुताई

मटर की फसल के लिए ठंडी जलवायु अच्छी मानी जाती है। इस फसल के लिए रेतीली , दोमट , चिकनी मिट्टी वाली भूमि का चयन करना चाहिए।

जिस खेत का चयन करे उसमें जल निकास की उचित व्यवस्था हो। फसल के लिए चयन की गई भूमि का पी.एच मान 6 से 7.5 के बीच का होना चाहिए।

मटर की फसल बुवाई से 20 दिन पहले 1 एकड़ खेत में 8 टन सड़ी हुए गोबर की खाद में 2.5 किलोग्राम ट्रिकोडेर्मा (Tricoderma) को मिलाकर खेत में डाल दे। इसके बाद खेत की 3 से 4 बार जुताई करके पट्टा फेर दे।


मटर की उन्नत किस्में ( Varieties )

पंजाब 88 – अवधि 95 से 105 दिन इस किस्म की फलियां गहरी हरी और मुड़ी हुई होती हैं । यह किस्म 95-105 दिन में पककर तैयार हो जाती है । हरी फलियों की पैदावार 62 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

मटर 157 – अवधि 125 से 130 दिन इस किस्म की औसत उपज 50-60 क्विंटल प्रति एकड़ है । इस किस्म के 100 दानों का वजन लगभग 19 ग्राम है । यह प्रजाति मटर की प्रमुख बीमारी चूर्णी फफूदी और गेरुई रोगों के लिए तथा फली छेदक कीट के लिए अवरोधी है। इसकी परिपक्वता अवधि 125 से 130 दिन है।

सपना – अवधि 120 से 125 दिन यह किस्म उत्तर प्रदेश के सभी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है । यह 120-125 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 12-13 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

श्रीराम सलोनी – अवधि 70 से 90 दिन यह 70 से 90 दिन की किस्म है । यह उच्च पैदावार वाली किस्म है । इसकी फली की लम्बाई 7 से 9 सेमी होती है।


मटर की खेती मे बीज की मात्रा

मटर की 1 एकड़ फसल तैयार करने के लिए 35 से 40 किलोग्राम बीज की जरुरत होती है ।

बीज उपचार

मटर को उकटा एवं जड़ सड़न रोग से बचाव हेतु बीज को बुआई से पूर्व थायरम 2 ग्राम + कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज या ट्राइकोडर्मा विरडी 4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।

इसके उपरान्त बीज को राइजोवियम एवं पीएसबी कल्चर प्रत्येक की 5 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। 100 ग्राम गुड़ का आधा लीटर पानी में घोल बनायें घोल को गुनगुना गर्म करें तथा ठंडा कर राइजोवियम कल्चर एवं पी एस बी कल्चर मिलाएं।

घोल को बीज के ऊपर समान रूप से छिड़क दें और धीरे – धीरे हाथ से मिलाएं ताकि बीज के ऊपर कल्चर अच्छे से चिपक जाएं। उपचारित बीज को कुछ समय के लिए छाँव में सुखाएं। इसके बाद तुरंत बुआई करें।

बुआई का तरीका

मटर बुवाई के समय पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी और पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी रखनी चाहिए। मिट्टी में नमी के आधार पर बीज को 2.5 सेमी की गहराई पर बोए।


उर्वरक व खाद प्रबंधन – मटर की खेती

बुवाई के समय मटर की फसल बुवाई के 1 हफ्ते पहले 1 एकड़ खेत में 8 टन गोबर की खाद और 2.5 किलोग्राम ट्रिकोडेर्मा का इस्तेमाल करे।

फसल बुवाई के समय 1 एकड़ खेत में 50 किलोग्राम डी ए पी , और 25 किलोग्राम पोटाश , 20 किलोग्राम यूरिया खाद , 5 किलोग्राम जायम , 3 किलोग्राम सल्फर का इस्तेमाल करे।

बुवाई के 21 से 25 दिन बाद मटर की 25 दिन की फसल में 1 एकड़ खेत में 1 किलोग्राम NPK 19:19:19 को 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करे।

बुवाई के 35 से 40 दिन बाद मटर की 40 दिन की फसल में 1 एकड़ खेत में 20 किलोग्राम यूरिया 5 किलोग्राम जायम का इस्तेमाल करे।

बुवाई के 50 से 55 दिन बाद 50 दिन की फसल में 2 ग्राम बोरोन 10 ग्राम npk 0:52:34 को 1 लीटर पानी के हिसाब से घोलकर स्प्रे करे।

बुवाई के 70 से 75 दिन बाद मटर की 70 दिन की फसल में 1 एकड़ खेत में 20 किलोग्राम यूरिया 5 किलोग्राम जायम का इस्तेमाल करे।


मटर की खेती मे सिंचाई

फसल में बीज के अच्छे अंकुरण के लिए बीज बुवाई से पहले खेत की पलेवा करे । मिटटी में नमी के आधार पर फसल को 2-3 सिंचाई की आवश्यकता होती है। प्रथम सिंचाई 40-45 दिन पर व दूसरी सिंचाई फली भरते समय करनी चाहिए।

फसल की कटाई

मटर की तुड़ाई फली के आकार और किस्मो के अनुसार करे। फलियों को सुबह या साम के समय तोड़े। 8 से 10 दिन अंतराल पर फसल में तुड़ाई करते रहे।


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