गेहू बुवाई से पहले बीज जनित रोगों से बचाव के उपाय

बीज जनित रोग सीधे फसल को प्रभावित करते हैं और फसल की पैदावार को घटा सकते हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के अनुसार, बीजों का सही समय पर उपचार करना फसल को इन रोगों से बचाने का एक प्रभावी तरीका है। IARI के वैज्ञानिक डॉ. एम. एस. सहारन ने भी बीज जनित रोगों के लक्षण और उनसे बचने के लिए बीज उपचार के महत्व को बताया है।

गेहूं के बीज जनित रोग और उनके लक्षण

  1. परण झुलसा (स्पॉट ब्लोच):
    यह रोग फसल की पत्तियों और तनों पर धब्बों के रूप में दिखाई देता है। बीज के जरिए फैलने वाला यह रोग पौधों की वृद्धि को कमजोर करता है और उपज में कमी ला सकता है।
  2. लूज स्मट (खुला कंडवा):
    इस फफूंद जनित रोग में फसल की बालियों पर काले धब्बे दिखते हैं, जो फसल की गुणवत्ता को कम कर देते हैं। इस रोग का प्रसार भी बीज के माध्यम से होता है।
  3. करनाल बंट:
    इस रोग में दाने काले हो जाते हैं और फसल की कटाई के बाद काले दाने दिखाई देते हैं। यह रोग भी फफूंद के कारण होता है और बीज से फैलता है।
  4. हेड स्कैब:
    यह रोग विशेष रूप से नमी वाले क्षेत्रों में देखा जाता है, खासकर पहाड़ी इलाकों में। इसमें बालियों पर गुलाबी रंग की फफूंद उभरती है, जिसे फ्यूजियम कहा जाता है।

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बीज उपचार के तरीके: कैसे करें बीज जनित रोगों से बचाव?

बीज उपचार से गेहूं के बीज जनित रोगों को नियंत्रित करना आसान हो जाता है। निम्नलिखित रासायनिक दवाओं का उपयोग बीज उपचार में किया जा सकता है:

  • कार्बेन्डाजिम (50 WP): 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज।
  • कार्बोक्सिन (75 WP): 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज।
  • तेबुकोनाजोल (2 DS): 1.25 ग्राम प्रति किलो बीज।

यदि आप जैविक तरीके से उपचार करना चाहते हैं, तो ट्राइकोडर्मा विरिडे का उपयोग कर सकते हैं। इसे 4-5 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से लगाया जा सकता है, जो फसल को सुरक्षित रखने का एक प्राकृतिक तरीका है।

बीज उपचार की विधि

बीज उपचार के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन करें:

  1. सबसे पहले बीज पर फंगी साइड (कवकनाशी) छिड़कें।
  2. बीज को हल्का गीला करें ताकि दवा बीज पर अच्छी तरह चिपक जाए।
  3. बीज उपचार हमेशा छाया में करें और इसके बाद बीज को सूखने दें।
  4. अगले दिन इन बीजों को बुवाई के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

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