प्लास्टिक मल्चिंग के नकारात्मक प्रभावों के चलते खेती में समस्याएं बढ़ रही हैं, प्लास्टिक मल्चिंग से मिट्टी की फर्टिलिटी कम होती है।
नॉन डिग्रेडेबल प्लास्टिक मल्चिंग करने से खेत की मिट्टी में कण मिल जाते हैं, मिट्टी में प्लास्टिक के कण पानी को नीचे जाने से रोकते हैं।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में प्लास्टिक खेती में समुद्र से ज्यादा प्लास्टिक मिल रहा है, एफएओ का अनुमान है कि 2030 तक विश्व में प्लास्टिक का उपयोग 9.5 मिलियन टन तक पहुंचेगा।
प्लास्टिक मल्चिंग के दौरान मिट्टी का तापमान बढ़ता है, जिससे माइक्रोब्स को नुकसान पहुंचता है, खेतों में घटिया क्वालिटी की प्लास्टिक का उपयोग मिट्टी की फर्टिलिटी कम करता है।
प्लास्टिक के टूटने से खेत की मिट्टी में प्लास्टिक के कण मिल जाते हैं, इससे धीरे-धीरे खेत की मिट्टी में मिनरल्स की कमी आती है और खेत बंजर होने लगते हैं।
प्लास्टिक के बदले में जूट या पराली का उपयोग किया जा सकता है, यह तकनीक ऑर्गेनिक मल्चिंग के रूप में जानी जाती है।
जूट या पराली से बनी मल्चिंग प्लास्टिक की तुलना में अधिक पर्यावरण सुहावना होती है, जूट या पराली से बनी मल्चिंग आसानी से डिकंपोज होती है।
जूट या पराली के उपयोग से प्लास्टिक के बदले में कार्बन फुटप्रिंट भी कम होता है, ऑर्गेनिक मल्चिंग के उपयोग से मिट्टी की फर्टिलिटी बढ़ती है।
जूट या पराली का उपयोग करने से खेत की सतह से पानी का निकास अच्छे से होता है, ऑर्गेनिक मल्चिंग करने से माइक्रोब्स को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है।
जूट या पराली से बनी मल्चिंग से खेत की मिट्टी में मिनरल्स का संतुलन बना रहता है, ऑर्गेनिक मल्चिंग खेती के लिए एक सुस्त, पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार और दैवीय संसाधनों का उपयोग करने वाला विकल्प है।