नीली हल्दी की खेती में पीली हल्दी की तुलना में ज्यादा मेहनत और ध्यान की आवश्यकता होती है, नीली हल्दी (ब्लू टर्मेरिक) भारत में तेजी से उगाई जा रही है।
नीली हल्दी की खेती के लिए उपयुक्त भूरभूरी दोमट मिट्टी होती है, नीली हल्दी की खेती में पानी नहीं लगना चाहिए, क्योंकि यह पीली हल्दी से जल्दी सड़ जाती है।
नीली हल्दी की खेती अधिकांश ढलान वाले खेतों में की जाती है, नीली हल्दी की खेती में बाजार में इसकी कीमत ज्यादा होती है।
नीली हल्दी उगाने पर किसानों को मुनाफा होता है क्योंकि इसकी उपज पीली हल्दी की उपज के मुकाबले अधिक होती है, नीली हल्दी की खेती करने से किसान बढ़ीतर आय प्राप्त कर सकते हैं।
बाजार में नीली हल्दी की डिमांड के हिसाब से इसकी कीमत विभिन्न रेंज में बिकती है, नीली हल्दी का उत्पादन अन्य वानस्पतिक उपज से अलग होता है, जिससे इसकी मांग बढ़ती है।
नीली हल्दी आयुर्वेदिक दवाओं में उपयोग होती है, इसकी खेती के लिए ध्यान रखने वाली खेती तकनीकें उपलब्ध हैं जो उत्पादकता को बढ़ाने में मदद कर सकती हैं।
नीली हल्दी की पौधशालाएं विशेष ध्यान और उपचार की आवश्यकता होती हैं, यह हल्दी बीजों या छिद्रों से उगाई जाती है, जो पूर्णतः समूह प्रवर्धन के माध्यम से किया जा सकता है।
नीली हल्दी की खेती में समय-समय पर पैदावार का निरीक्षण करना आवश्यक होता है, कई विभिन्न प्रकार की रोगों और कीटाणुओं से नीली हल्दी की खेती को सुरक्षित रखना महत्वपूर्ण होता है।
नीली हल्दी की पौधों को समय-समय पर पोषक तत्वों से भरपूर खाद देना चाहिए। नीली हल्दी की उपज को ध्यान में रखते हुए सही समय पर कटाई की जानी चाहिए।
नीली हल्दी की खेती में न्यूनतम रोपण दूरी की सावधानी रखनी चाहिए ताकि पौधों को पर्याप्त स्थान और पोषक तत्व मिल सकें, नीली हल्दी की उपज को अच्छी रखवाली और उचित बाजार संचार के माध्यम से आपूर्ति तक पहुंचाना चाहिए, ये बिंदुगण नीली हल्दी की खेती और किसानों के लिए मुनाफा कमाने के संबंध में महत्वपूर्ण तथ्य प्रदान करते हैं।