आलू एक ऐसी फसल है जो जड़ों में पैदा होता है और मिट्टी के अंदर विकसित होता है, एयरोपॉनिक्स तकनीक के माध्यम से आलू की खेती की जा सकती है।
इस तकनीक में मिट्टी और जमीन की कमी को पूरा किया जाता है, आलू की पौध नर्सरी में तैयार की जाती है और बड़े पाइपों में लगाई जाती है
पानी के जरिए पोषक तत्व जड़ों में पहुंचाए जाते हैं और जड़ों के नीचे जालीनुमा टेबल लगाई जाती है, इस तकनीक से आलू की पैदावार और बीज उत्पादन में वृद्धि होती है।
एयरोपॉनिक्स तकनीक से हर 3 महीने में आलू की पकी हुई फसल तैयार की जा सकती है, इस तकनीक से खाद, उर्वरक और कीटनाशकों का खर्च भी कम होता है।
यह तकनीक सड़न और कीड़ा/रोग लगने की संभावना को कम करती है, एयरोपॉनिक्स तकनीक का आविष्कार हरियाणा के करनाल जिले में हुआ।
आलू प्रौद्योगिकी केंद्र में इस तकनीक के अभ्यास के लिए मानव द्वारा निर्मित हुआ। भारत सरकार ने किसानों को ऐरोपोनिक पोटैटो फार्मिंग की मंजूरी दी है।
ऐरोपोनिक्स तकनीक से आलू की खेती में मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती है। इस तकनीक के उपयोग से किसानों को उच्च उत्पादकता दर मिलती है।
एयरोपॉनिक्स तकनीक का उपयोग करके आलू की खेती में समय और मेहनत की बचत होती है, इस तकनीक से आलू की उच्च गुणवत्ता और विशेष गुणधर्म वाली फसल प्राप्त होती है।
यह तकनीक प्रदूषण मुक्त खेती को बढ़ावा देती है, एयरोपॉनिक्स तकनीक से आलू की खेती में प्रकृति संरक्षण में सुधार होता है।
यह तकनीक प्रदूषण मुक्त खेती को बढ़ावा देती है, एयरोपॉनिक्स तकनीक से आलू की खेती में प्रकृति संरक्षण में सुधार होता है।