मौसम के उतार-चढ़ाव, बदलाव का सबसे अधिक असर खेती-किसानी पर पड़ता है, इस वर्ष फरवरी में तापमान का बढऩा, मार्च में बेमौसम बरसात तथा ओलावृष्टि का होना एवं तेज हवाओं का चलना गेहूं किसानों की उम्मीद पर वज्रपात के समान था।
मौसम का बदलना असमंजस मे डाल रहा
इसके पश्चात कड़ी धूप का निकलना एवं मौसम में ठंडक का एहसास तथा तापमान में पुन: गिरावट से किसान की उम्मीदों का जगना और विशेषज्ञों के अनुमानित उत्पादन आंकड़े का बदलना असमंजस की स्थिति निर्मित कर रहा है। इससे रबी की प्रमुख फसल गेहूं का उत्पादन इस वर्ष कम रहने की तथा कीमतें बढऩे की संभावना बढ़ गई है।
मौसम की चपेट में गेहूं
मौसम की परिवर्तन एवं खेती-किसानी पर असर कोई नयी बात नहीं है, लेकिन इस वर्ष की मौसम की चपेट में गेहूं किसानों को नए चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। फरवरी महीने में तापमान के बढ़ने से गेहूं की बुआई को प्रभावित किया गया और मार्च में बेमौसम बरसात तथा कीमतें बढऩे की संभावना बढ़ गई है।
गेहूं के दाने टूट गए हैं, या काले पड़ गए
वर्ष 2022-23 में देश में 343 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में गेहूं बोया गया है, तथा दूसरे अग्रिम उत्पादन अनुमान के मुताबिक 11.12 करोड़ टन उत्पादन होने का अनुमान है। परन्तु विशेषज्ञों एवं रिपोर्ट के मुताबिक तेज हवाओं के साथ बारिश की वजह से कहीं-कहीं गेहूं के दाने टूट गए हैं, या काले पड़ गए हैं। दानों के सिकुडऩे की बात भी सामने आ रही है।
केंद्र ने भी कहा था कि प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से गेहूं की 8-10 फीसदी फसल को नुकसान होने का अनुमान है, मगर देर से बोआई वाले क्षेत्रों में बेहतर उपज की संभावना से इसकी भरपाई हो सकती है।
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एमएसपी से कम भाव दिया जा रहा
मध्य प्रदेश में मार्च में ही शुरू हो चुकी है नए गेहूं की आवक हालांकि, मंडी में आ रही फसल में नमी की मात्रा अधिक होने की वजह से व्यापारी और बड़ी कंपनियां खरीद पर परहेज कर रही हैं। व्यापारियों द्वारा किसानों से गेहूं खरीद किया जा रहा है, लेकिन एमएसपी से कम भाव दिया जा रहा है।
केंद्रीय खाद्य सचिव श्री संजीव चोपड़ा ने बताया कि मध्य प्रदेश में गेहूं की खरीद के लिए गुणवत्ता मानकों में ढील दी गई है, और पंजाब और हरियाणा में भी जल्द ही ऐसा करने पर विचार किया जाएगा। भारतीय खाद्य निगम और राज्य सरकारी एजेंसियां कई राज्यों में खरीदारी शुरू कर चुकी हैं।
मध्य प्रदेश में मार्च में विभिन्न समय पर हुई ओला वृष्टि और बारिश ने प्रदेश के अधिकांश हिस्सों में फसलों को बुरी तरह प्रभावित किया। प्रदेश के 25 से अधिक जिलों में 70,000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में बारिश और ओले की चपेट में आने से जिससे गेहूं, चना और सरसों की फसल को खासा नुकसान पहुंचा है।
गेहू उत्पादन मे कमी देखि जा सकती है ?
विशेषज्ञ मान रहे हैं कि अगले मौसम की साफ और बिना बारिश के गेहूं का उत्पादन 10.5 करोड़ टन के करीब रह सकता है, हालांकि, अगले मौसम में खराबी होने की संभावना है, जिसके कारण उत्पादन 10 करोड़ टन से कम हो सकता है। सरकार द्वारा दिए गए अन्य अग्रिम अनुमानों के अनुसार इस वर्ष 11.22 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन हो सकता है। पिछले साल मार्च में तापमान में रिकॉर्ड बढ़ोतरी और लू के कारण गेहूं का उत्पादन गिरा था।
पिछले साल सरकारी खरीद भी काफी कम रही थी
उत्पादन घटने और कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से अधिक रहने के कारण पिछले साल सरकारी खरीद भी काफी कम रही थी क्योंकि किसानों ने निजी कंपनियों और कारोबारियों को ऊंचे भाव पर गेहूं बेचना पसंद किया था।
पिछले साल सरकारी केंद्रों पर केवल 1.88 करोड़ टन गेहूं बिका था, जो 2021-22 के 4.33 करोड़ टन गेहूं की तुलना में 56.58 फीसदी कम रहा। इस साल सरकार का लक्ष्य है 3.41 करोड़ टन गेहूं खरीदने का।
जनवरी में भाव 3,200 रुपये प्रति क्विंटल तक थे
खुले बाजार में गेहूं बिक्री की सरकारी घोषणा से पहले जनवरी के मध्य में भाव 3,200 रुपये प्रति क्विंटल तक चले गए थे, लेकिन जनवरी के आखिरी हफ्ते में 30 लाख टन गेहूं की खुली बिक्री के फैसले के बाद भाव घटने लगे।
फरवरी में सरकार ने 20 लाख टन गेहूं बेचने का निर्णय लिया और इसकी मूल्य भी घटाकर 2,125 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया। 15 मार्च तक सरकार ने 33.77 लाख टन गेहूं खुले बाजार में बेचा है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी गेहूं की कीमत 30 फीसदी कम
अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी गेहूं की मौजूदा कीमतें पिछले साल के मुकाबले लगभग 30 फीसदी कम हैं। यूक्रेन और रूस के बीच शुरू हुई जंग के कारण आपूर्ति में रुकावट आई, जिससे मई माह में गेहूं के अंतरराष्ट्रीय मूल्य 450 डॉलर प्रति टन से ऊपर थे, जो अब 280 डॉलर प्रति टन के आसपास हैं।
परिणामस्वरूप गेहूं की कीमत कई राज्यों में एमएसपी से नीचे रह गईं, जो 1,800 से 2,000 रुपये प्रति क्विंटल तक है। एमएसपी 2,125 रुपये प्रति क्विंटल है। आगे मौसम बिगड़े रहने की संभावना है, जिससे गेहूं का उत्पादन और गुणवत्ता दोनों घटेंगे और भाव बढ़ सकते हैं।
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