पशुओं मे गलघोंटू रोग हो सकती है अकाल मृत्यु

देश में पशुपालन के जरिए किसानों की आय तब ही बढ़ेगी तभी जब पशु रोगमुक्त होंगे, गर्मी और बरसात के दिनों में दुधारू पशुओं को गलघोंटू नामक खतरनाक बीमारी होती है, जो उनकी मृत्यु तक पहुंच सकती है। यह बीमारी उन स्थानों पर अधिक होती है, जहां बारिश का पानी इकट्ठा हो जाता है।

यह पशुओं में होने वाली छूतदार बीमारी है, जो मई-जून में गाय-भैंसों में अधिक होती है। इस बीमारी के होने की संभावनाएं गाय-भैंसों में गर्मी के मौसम में बढ़ जाती हैं। यह रोग जीवाणुओं के माध्यम से पनपता है, और अगर पशु का स्थान अस्वच्छ है, तो जीवाणु उस पर तेजी से हमला करेंगे। पशुओं में इस रोग का फैलाव भी बेहद तेजी से होता है।

गलघोंटू रोग के क्या है ?

गलघोंटू रोग (Galghotu Rog) एक गंभीर जीवाणु (बैक्टीरिया) जनित बीमारी है, जो गाय और भैंस को प्रभावित करती है और यह आमतौर पर मॉनसून के दौरान होती है। यह बीमारी “पास्चुरेला मल्टोसीडा” नामक जीवाणु के संक्रमण से होती है।

संक्रमित पशु से स्वस्थ पशु में दूषित चारे, लार या श्वास द्वारा स्वस्थ पशु में फैलती है, यह बीमारी भैंस को गाय की तुलना में अधिक प्रभावित करती है, और मृत्यु दर 80% तक हो सकती है। इस बीमारी के जीवाणु आर्द्रता और पानी से जुड़ी परिस्थितियों में लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं।

गलघोंटू रोग के क्या लक्षण होते है ? 

  • जानवर को एकदम तेज बुखार (107⁰ F तक) होता है और अति तीव्र प्रकार के संक्रमण में वह एक घंटे से लेकर 24 घंटे के अन्दर मर जाता है।
  • उच्च तापमान में ताक बन जाता है जिसके कारण दूध की उत्पादन में अचानक कमी होती है।
  • लार की प्रचुरता बढ़ जाती है और नाक से स्राव बहने लगता है।
  • गले, गर्दन और छाती में दर्द के साथ सूजन आती है।
  • सांस लेने में मुश्किल होती है, जिसके कारण जानवर एक अजीब ध्वनि पैदा करता है।
  • तीव्र प्रकार के संक्रमण में जानवर आमतौर पर 1-2 दिनों के भीतर ही मर जाता है।
  • भैंस गाय की तुलना में अधिक संवेदनशील होती है।
  • संक्रमित भैंसों में मृत्युदर काफी अधिक होती है।
  • भेंसों के अतिरिक्त वृध और कम उम्र के जानवरों में भी मृत्युदर अधिक देखा जाता है।

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गलघोंटू रोग बचाव के उपाय

यह बताया जाता है, कि इस बीमारी के समय में अगर उपचार नहीं किया गया तो पशु की मौत हो सकती है। इसलिए रोग के लक्षण निकटवर्ती पशु चिकित्सालय में सूचित करें और रोगी पशु को तुरंत उपचार करवाएं। गलाघंटू रोग (Galghotu Rog) का टीका निकटतम पशु चिकित्सा संस्थान से लगवाएं। रोगी पशु को नदी, तालाब, पोखर आदि में पानी न पिलाएं।

  • बीमार पशुओं को स्वस्थ पशुओं से तुरंत अलग रखें और उनके लिए अलग फ़ीड, चारा और पानी का उपयोग करें ताकि बीमारी के जीवाणुओं के संक्रमण से बचा जा सके।
  • बीमार पशु को सार्वजानिक स्थान जहां पशु एकत्र होते हैं में न ले जाएं क्योंकि यह रोग साँस द्वारा और पानी पीने और चारा ग्रहण करने से भी फैल सकता है।
  • गीले मौसम के दौरान भीड़ से बचें।
  • मरे हुए पशुओं को जमीन में कम से कम 5 से 6 फुट गहरा गड्डा खोदकर और चूना और नमक छिड़ककर अच्छी गाड देना चाहिए।

टीकाकरण से करे पशुओ को सुरक्षित

6 महीने और उससे अधिक उम्र के सभी पशुओं को गलघोटू रोग का टीका (Galghotu Rog Tikakarn) लगवाएं और पशुओं को वर्ष में दो बार गलघोटू रोग का टीकाकरण अवश्य करवाएं।

  • पहला टीका वर्षा ऋतु शुरू होने से पहले (मई-जून महीने में) और
  • दूसरा शीत ऋतु शुरू होने से पहले (अक्टूबर-नवम्बर महीने में) लगवाना चाहिए।

गलघोंटू रोग का उपचार – Galghotu Rog ka Upchar

  • रोग के लक्षण पूरी तरह से विकसित होने के बाद कुछ ही जानवर इलाज़ के बाद जीवित रहते हैं।
  • यदि संक्रमण के शुरुआती चरण में उपचार का पालन नहीं किया जाता है, तो बीमार पशुओं की मौत की दर 100% तक पहुंच जाती है।
  • अगर पशु चिकित्सक समय पर उपचार शुरू कर भी देता है, तब भी इस जानलेवा रोग से बचाव की दर काफी कम है।
  • “इलाज से बेहतर है बचाव” गलघोटू रोग के साथ खुरपका मुंहपका रोग का टीकाकरण करने से पशुओं को गलघोटू रोग से बचाया जा सकता है।

यह सतर्कता अवश्य बरतें

विशेषज्ञों के अनुसार, यह बीमारी एक पशु से दूसरे पशु में तेजी से फैलती है। इसलिए स्वस्थ पशुओं को अलग-अलग चारा, दाना और पानी दें, साथ ही उनके रहने का स्थान रोगी पशुओं से अलग रखें।

बीमारी से मृत पशु के शव का निस्तारण वैज्ञानिक तरीके से गहरे गड्ढे में नमक या चूना डालकर करें, अन्यथा इसके संपर्क में आने से अन्य पशुओं को भी बीमार हो सकता है। इसके अलावा रोगी पशुओं का दूध पीने से बचें।

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