बकरी पालन से कम खर्च में होगा अधिक मुनाफा, सरकार देती है अनुदान

बकरी पालन (Goat Rearing) का व्यवसाय छोटे, सीमांत और भूमिहीन किसानों (Farmers) के लिए एक बेहतर विकल्प है। इस व्यवसाय में कम स्थान, कम खर्च और सीमित देखभाल करके के भी मुनाफा कमाया जा सकता है।

यहीं कारण है कि बीते 5 साल में भारत में बकरियों की संख्या में इजाफा देखा गया है, हर 5 साल में होने वाली पशुगणना के आंकड़ों के अनुसार पशुधन में 4.6 फीसदी की वृद्धि हुई है।

डीडी किसान की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2012 में पशुधन की आबादी 51 करोड़ 20 लाख थी. 2019 में यह बढ़कर 53 करोड़ 57 लाख 80 हजार हो गई. कुल पशुधन में बकरियों की हिस्सेदारी 27.8 प्रतिशत है।

मतलब बकरियों की संख्या में 10 प्रतिशत का इजाफा होकर 14.9 प्रतिशत हो गया है, इन आंकड़ों से पता चलता है, कि पशुपालक बकरी पालन में दिलचस्पी दिखा रहे हैं।

बकरी पालन के लिए सरकार से मिलता है अनुदान

बकरी से किसान दूध और मांस के साथ-साथ बाल, खाल और रेशों का व्यवसाय भी कर सकते हैं। इसके अलावा बकरी के मूत्र का इस्तेमाल खाद के रूप में भी किया जाता है।

बकरी पालन के व्यवसाय में शुरुआती लागत कम होती है और इनके आवास व प्रबंधन पर भी कम खर्च आता है।

बकरी पालन (Goat Rearing) में सरकार की ओर से भी मदद की जाती है, केंद्र और राज्य सरकार की ओर से 25 से 33 प्रतिशत तक का अनुदान मिलता है।

बकरी पालन के सफल व्यवसाय के लिए जरूरी है कि वे स्वस्थ और निरोगी रहें. अगर बकरियां बीमार हो जाएं तो तुरंत इलाज की सलाह दी जाती है।

बकरियों में होने वाले रोग

बकरियों में कुछ रोग होने की आशंका ज्यादा रहती है। चेचक उनमें से एक है, यह विषाणु से होने वाला संक्रामक रोग है, जो सांस लेने या त्वचा के घांव के माध्यम से पशु के शरीर में पहुंचता है।

इस बीमारी के लक्षण दो से सात दिन के अंदर सामने आने लगते हैं। यह बीमारी हो जाने पर स्वस्थ पशुओं को अलग कर दिया जाता है।

दूसरी बीमारी निमोनिया है, पानी में भिगने, ठंड लग जाने और अचानक मौसम के बदलने से बकरियों को निमोनिया हो सकता है।

खुरपका-मुंहपका रोग- यह एक संक्रामक बीमारी है, और बकरी सहित सभी जानवरों में होने की आशंका रहती है। इस रोग में पीड़ित में पशुओं के मुंह और पैर में घांव होना पहला लक्षण है।

इन रोगों की रोकथाम के लिए समय पर टीकाकरण जरूरी है, अगर विशेषज्ञों की सलाह लेकर बकरी पालन किया जाए तो यह फायदेमंद व्यवसाय हो सकता है।

हर छोटी-बड़ी समस्या को लेकर समय-समय पर कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा मार्गदर्शन किया जाता है, किसान यहां से भी मदद ले सकते हैं।


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