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Rice Crisis : चावल का संकट गंभीरता के पीछे के कारण

चावल भारतीय भोजन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसके बिना भोजन पूरा नहीं माना जाता. हालांकि, नवीनतम रिपोर्टों के अनुसार, आने वाले समय में चावल का संकट दुनिया भर में गंभीरता से बढ़ रही है. इस लेख में हम इसकी वजह और इससे होने वाले भारतीय प्रभाव के बारे में चर्चा करेंगे. इसके साथ ही हम देखेंगे कि भारत विश्व चावल उत्पादन में कितना महत्वपूर्ण योगदान देता है.

चावल के संकट का कारण क्या है?

चावल का संकट (Rice Crisis )पूरी दुनिया में क्यों गहराता जा रहा है, इस पर हाल ही में फिच सॉल्यूशंस ने एक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट के अनुसार, चावल के मुख्य उत्पादक देशों में चावल की उत्पादन दर में तेजी से कमी हो रही है। आने वाले समय में इस ग्राफ में नीचे की ओर गिरावट दिखाई दे रही है।

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चीन, अमेरिका और यूरोपीय संघ में चावल की उत्पादन बहुत पहले की तुलना में कम हो गई है। यह उत्पादन केवल कुछ लाख टन नहीं, बल्कि उससे भी अधिक कम हो गया है। फिच सॉल्यूशंस के कमोडिटी एनालिस्ट चार्ल्स हार्ट के मुताबिक, इस साल बाजार में चावल की लगभग 1.86 करोड़ टन की कमी आई है।

2003-04 के बाद की सबसे बड़ी कमी की जानकारी है।

फिच सॉल्यूशंस की रिपोर्ट के अनुसार, चावल (Rice) की इतनी कमी साल 2003-04 में हुई थी। अब चावल की कमी के पीछे कई मुख्य कारण हैं। इनमें से रूस-यूक्रेन युद्ध, चीन और पाकिस्तान जैसे चावल उत्पादक देशों में खराब मौसम और क्लाइमेट चेंज भी बड़े कारण हैं।

साथ ही, लोगों की किसानी के प्रति कम होती दिलचस्पी भी एक मुख्य कारण है। अब यह बड़ा सवाल है कि चावल की उत्पादन में कमी होने पर उसकी कीमतें बढ़ेंगी। इससे भारत जैसे देश पर कितना असर पड़ेगा और आम आदमी कितनी परेशानी में पड़ेंगे, यह समझने वाली बात है।

भारत में चावल का उत्पादन कितना होता है?

भारत में चावल का उत्पादन हमेशा से अच्छा रहा है। वास्तव में, साल 2012-13 से हर साल भारत में चावल का उत्पादन एक लाख टन से अधिक रहा है। यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2021-22 में भारत में 129,471 टन चावल उत्पन्न हुआ था।

वहीं साल 2022-23 में चावल का उत्पादन 136,000 टन हुआ था। लेकिन, 2023-24 में इसमें थोड़ी कमी आई और उत्पादन 134,000 टन हो गया। हालांकि, अन्य देशों की तुलना में, जहां चावल का उत्पादन घटा है, भारत फिर भी अच्छी स्थिति में है।

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