गर्मी में चार से सात दिन और ठंड में 10 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें, पाले में चेतावनी पर तुरंत सिंचाई करें।
तीसरी सिंचाई के बाद निराई गुड़ाई करें ताकि जड़ों और तने को कोई नुकसान न हो। फलों को तोडऩे के लिए उनका रंग गहरा हरे से हल्का पीले को बदलने लगता है।
फलों पर नाखून लगने से दूध की जगह पानी और तरल निकलता है, जिससे समझा जा सकता है कि फल पक गया है, फलों को सावधानी से तोड़ें और छोटी अवस्था में उनकी छंटाई करें।
माइट, एफिड्स, और फल मक्खी जैसे कीटों के नियंत्रण के लिए मेटासिस्टॉक्स और बोर्डो पेस्ट का उपयोग करें, फूट एंड स्टेम राट बीमारी से बचाने के लिए तने के पास पानी जमा न होने दें।
सल्फर डस्ट का उपयोग करके पौधों पर पावडरी मिल्ड्यू का नियंत्रण करें, पपीते के पौधे के जड़ में ट्रायकोडर्मा और बायोनिकोनिमा का उपयोग करें।
पपीते के पौधे के लिए ब्लूकापर का उपयोग करें, फूल खिलने के बाद करेंटीमैट का उपयोग करें।
पौधों को सप्रेजिंग करें और 15 से 25 दिन के अंतराल पर आवश्यकता के अनुसार करें, स्प्रे के लिए अलग से पम्प उपयोग करें।
स्प्रे में इल्ली मरने वाले कीटनाशक दवाओं का उपयोग न करें, पौधे को पॉलीथिन थैली में तैयार करें।
थैलियों में गोबर की खाद, मिट्टी और रेत का मिश्रण बनाएं, प्रति थैली में दो से तीन बीज रखें।
पौधों को धारदार ब्लेड के द्वारा पहले से तैयार गढ्ढों में लगाएं, पौधे को नियमित रूप से देखें और रोगों के लक्षणों को पहचानें ताकि समय रहते उचित उपचार किया जा सके।